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________________ कसोवले अभव्व संगमस्सु भाविसामले, सुपत्तु जस्सु धीरदा सुवण्णु जाउ उज्जलु। सुरिंद चक्कवागवासराहिणाधु सो जिणु, सभत्तिहं मणुस्सहं सुहाय णादनंदणु ॥१॥ सकम्मरोगहिं पपीडिया पवड्ढवेयणा, मलीणवासणागुला अपत्थ सेवणायरा । कहं नु हुंत माणवा न हुंत भूतले जई, परोवगारलद्ध जम्म धम्म विज्जगा जिणा ॥२॥ विमुत्तिमग्गदसणग्गबारु विग्घवज्जिउ, दुरन्त दुग्गदिप्पवेसरोहलोह अग्गलु। जयप्पयासु सामि जोग खेमकारगुत्तमु, करेउ नट्ठ दुक्खजालु सो मई जिणागमु ॥३॥ -कल्याणविजय संस्कृत पाठ नमः श्री वर्धमानाय निद्धत कलिलात्मने। सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते॥ कोल्महत्या भुवि वर्द्धमानं त्वां वर्द्धमानं स्तुति गोचरत्वम् । निनीषवः स्मोवयमद्य वीरं विशीर्ण-दोषाऽऽशय-पाशबन्धम् ॥ दयादमत्याग समाधि निष्ठं नय प्रमाण-प्राकृताञ्ज सार्थम् । अधृष्यमन्यैरखिलः प्रदैिजिन त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥ अभव्य संगम रूपी कृष्ण कषोपल (काली कसौटी) पर कसा जाकर आपका अपूर्व धैर्य समुज्ज्वल स्वर्ण की भांति चमक उठा । वह ज्ञात-नन्दन जिनेन्द्र महावीर जो सुरेन्द्रों, चक्रवति नरेशों, दिक्पालादि के स्वामी हैं, भक्त मनुष्यों को सुख दें। यदि पृथ्वीतल पर आप जैसे महापरोपकारी धर्म वैद्य का सुयोग न मिलता तो अपने कर्मों के रोगों से पीड़ित, बढ़ती हुई वेदना से त्रस्त, नीच वासनाओं से आकुलव्याकुल, अपथ्य विषय सेवी मनुष्यों का क्या भविष्य होता ? कैसे उनकी सुगति होती ? हे जिनेन्द्र ! आपकी वाणी (आगम) विमुक्ति मार्ग के अग्रद्वार के दर्शन कराने वाली है, समस्त विघ्नों को दूर करने वाली है, दुरन्त दुर्गति में प्रवेश रोकने के लिए लौह अर्गला है, हे स्वामी वह जगत के तत्वों की प्रकाशक है, उत्तम योग-क्षेम की कर्ता है, वह जिनागम मेरे दुख जाल को नष्ट कर दे। केवलज्ञान-लक्ष्मी सम्पन्न उन भगवान वर्द्धमान को नमस्कार हो, जिन्होंने अपनी आत्मा से समस्त कर्ममल धो डाला है और जिनके ज्ञान में अलोकाकाश सहित तीनों लोक दर्पणवत् प्रतिबिंबित होते हैं। हे वीर जिन ! आप दोषों और दोषाशयों के पाशबन्धन से मुक्त हैं, आप निश्चय से ऋद्धमान, सर्वोत्कृष्ट और अबाध्य हैं, महती कीर्ति से भूमण्डल पर वर्द्धमान हैं (सर्वत्र आप की कोति फैली है), मैं आपकी स्तुति करने में प्रवृत्त होता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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