________________
६ ]
जं रर्याणि च समणे भयवं महावीरे कालगए जाव सव्व दुक्खप्पहीणे तंरर्याणि च णं नव मल्लइ नव लेच्छइ कासी - कोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो अमावसीए पाराभोयं पोसहोववासं पट्ठवसु गए से भावज्जोए दव्वुज्जोअं करिस्सामो ॥
अपभ्रंश पाठ
—कल्पसूत्र
दुक्कर तवचरणारओ खंति खमो उग्गबंभचेरोय । अप्प पर तुल्ल चित्तो मोणव्यय पाणाभोई य ॥ — नेमिचन्द्र
विद्ध सिय- रइवइ पणवेपणु सम्म ण पेमे
सुरवइ- णरवइ-फणिवइ-पयडिय सासणु । निदिय दुम्मइ णिम्मल-मग्ग- पयासणु ॥ णिसण्णो महावीर - सण्णो । जईणं जए संजणं ॥ खमा संजमाणं ।
तमीसं दमाणं जमाणं
उहाणं रमाणं दया-वड्ढमाणं
सिरेणं
Jain Education International
पबुद्धत्थ-माणं ॥ जिणे वड्ढमाणं । णमामो ॥
- पुष्पदन्त
जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर ने आत्मा को समस्त दुःखों से छुड़ा कर निर्वाण प्राप्त किया उस रात्रि को नवमल्ल, नवलिच्छवि और कासी - कोसलादि प्रदेशों के अठारह गणराजाओं ने एकत्र होकर प्रोषधोपवासपूर्वक अमावस्या को निर्वाण पूजन की, और भावज्योति का अवसान हुआ हम उसके स्थान में द्रव्य ज्योति करें, ऐसा कहकर दोपमाला प्रज्वलित की ।
( दीक्षा के उपरान्त) वह उस दुष्कर तपश्चरण में रत हो गये, जिसकी विशेषताएँ क्षांति, क्षमा (उपशम) और उम्र ब्रह्मचर्य थे । उस पाणितलभोजी, मौनी योगिराज का हृदय आत्म-अनाम (आपा-पर) के प्रति समता से पूर्ण था ।
मैं उन सन्मति भगवान को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने कामदेव का पराभव किया, जिनका शासन सुरपति, नरपति तथा नागपति द्वारा प्रकटित हुआ, जिन्होंने कुज्ञान की निंदा की और निर्मल मोक्षमार्ग का प्रकाशन किया ।
वह महावीर भौतिक प्रेम में अनासक्त रहे, समस्त यतियों एवं आर्यिकाओं के ईश थे, दम, यम, क्षमा, संयम एवं अभ्युदय और निःश्रेयस रूप उभय लक्ष्मी तथा सम्पूर्ण तत्त्वार्थ के ज्ञाता थे, वृद्धि - शील दया के साक्षात् रूप ऐसे उन वर्धमान जिनको मैं मस्तक झुकाकर नमन करता हूँ 1
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org