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________________ १८ ] ख -७ परिवर्तन और प्रगति के लिए जिस प्रकार का जीवन दर्शन प्रतिपादित किया गया है, वह तथा उसके अहिंसा एवं अपरिग्रह के सिद्धान्त आर्थिक विकास और वर्तमान समाज की आकांक्षाओं को ऊपर उठाने में पूर्णतया समर्थ हैं। ४. सहअस्तित्व की अवधारणा-साम्प्रदायिक संकीर्णता वैचारिक असहिष्णता को उभारती है। इस संदर्भ में भगवान महावीर का अनेकान्तवाद तथा स्याद्वाद आधुनिक समाजवादी धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के अनुरूप है तथा वैयक्तिक एवं सामाजिक विचारों को स्वस्थ बनाने में प्रभावकारी रूप में सहायक है। ५. जैन धर्म : एक सामाजिक आन्दोलन-जैन धर्म का विकास तत्कालीन समाज-व्यवस्था के विरोध में एक सशक्त क्रान्ति के रूप में हुआ था । आधुनिक समाज की समस्याओं-गरीबी, जातिवाद, सम्प्रदायवाद-को हल करने में भी जैन धर्म के सिद्धान्त उतने ही सहायक सिद्ध हो सकते हैं। गोष्ठी का आयोजन ६ उपवेशनों में किया गया जिनकी अध्यक्षता प्रो. सुरजीत सिंह, कुलपति, विश्वभारती, शान्ति निकेतन, प्रो० राजाराम शास्त्री, सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र जैन, डा० नथमल टाटिया, डा. दरबारीलाल कोठिया एवं डा० मोहनलाल मेहता ने की। मसरी-दि. १ जून १९७५ को श्री दि० जैन महावीर भवन मसूरी में राज्य समिति के आर्थिक सहयोग से "शाकाहार" पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए माननीय डा० रामजी लाल सहायक ने कहा कि शाकाहारी सिद्धांत अपने व्यापक पक्षों में जीवन स्थिर रखने की श्रेष्ठ आहार पद्धति है, क्योंकि इन्द्रिय और मन की स्वस्थता का मूल आधार ही आहार शुद्धि है। मांसाहार से मनुष्य की कोमल भावनाएं नष्ट हो जाती हैं तथा मनुष्य का मन क्रूरता, उत्तेजना एवं हिंसात्मक विचारों से भर जाता है। शाकाहार के अहिंसा पक्ष को भी यदि कोई प्रश्रय न दें तो भी हमारे देश की जलवायु में दीर्घ-जीवन के लिए शाकाहार ही सर्वोत्तम आहार पद्धति है। इस गोष्ठी में मुख्य अतिथि व वक्ता श्री अक्षय कुमार जैन, प्रधान सम्पादक नवभारत टाइम्स, डा. जयकिशन प्रसाद खंडेलवाल, आगरा विश्वविद्यालय तथा पं० शीलचन्द्र मवाना थे, संयोजक श्री नरेन्द्र कुमार जैन देहरादून थे । मसूरी के लिए यह आयोजन अभूतपूर्व था। दि० १० जून को श्री अक्षय कुमार जैन की अध्यक्षता में एक सर्वधर्म सम्मेलन आयोजित किया गया। - लखनऊ--लखनउ में "भारतीय संस्कृति में जैन विचारधारा" विषय पर एक चार दिवसीय संगोष्ठी २६-२९ अक्टूबर, १९७५ को बाल रवीन्द्रालय में राज्य समिति के आर्थिक सहयोग से जिला महावीर निर्वाण समिति द्वारा सम्पन्न हुई । संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए उच्च शिक्षा मन्त्री माननीय डा० रामजी लाल सहायक ने कहा कि समग्र दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि जैन विचारधारा भारतीय संस्कृति की सशक्त धारा रही है और इसका प्रभाव न्यूनाधिक जन-जीवन के सभी क्षेत्रों पर व्यापक रूप से पड़ा है। साहित्य और कला के माध्यम से हमें जैनों की सृजनात्मक प्रतिभा का प्रभूत परिचय मिलता है। आज भी यद्यपि जैन धर्म के अनुयायी अल्प संख्या में हैं, शिक्षा, कला, विद्या और व्यापार के क्षेत्र में वे अपना विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ___ संगोष्ठी के प्रथम सत्र का विवेच्य विषय था "भारतीय साहित्य और जैन साहित्यकार" । डा. केसरी नारायण शुक्ला ने अपने अध्यक्षीय भाषण में बताया कि भारतीय संस्कृति समुद्र संगम है जिसमें भारतीय समाज की विविध धाराएं अपने विचारों को युगों-युगों से उसमें अपित करती रही हैं। जैन साहित्य अभिनन्दनीय है क्योंकि जैन ग्रंथकारों ने भारतीय ज्ञान के विविध अंगों तथा विविध भाषाओं को समृद्ध किया। इस सत्र में प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य पर डा. मोती लाल रस्तोगी ने, संस्कृत साहित्य पर डा. जगदम्बा प्रसाद सिन्हा ने, हिन्दी साहित्य पर डा० (श्रीमती) सरला शुक्ला ने, दक्षिण भारतीय भाषाओं के साहित्य पर श्री रमाकांत जैन ने तथा मराठी साहित्य पर श्री काशीनाथ गोपाल गोरे ने गम्भीर अध्ययन प्रस्तुत किये। द्वितीय सत्र का विवेच्य विषय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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