________________
[ १३
PATRO
गंथणिमित्तं कम्मं कुणइ अकादव्वयंपि णरो धन के लिए मनुष्य न करने योग्य कार्य भी करता है ।
संगो महाभयं परिग्रह महान भय है।
विणीय तण्हो विहरे (अतः) तृष्णा से मुक्त होकर विचरो।
धणेण कि धम्मधुराहिगारे धन से क्या धर्म की गाड़ी चलती है ? सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था भगवान ने सर्वत्र निष्कामता को ही प्रशस्त-श्रेष्ठ कहा है।
अप्पाणमप्पणो परिग्गहं वास्तव में तो अपना आत्मा ही अपना एकमात्र परिग्रह है ।
अप्पा नई वेयरणी अप्पामे कूडसामली।
अप्पा कामदुहाधेणु अप्पा मे नंदनणं ॥ मेरी आत्मा ही नरक की वैतरणी नदी और कूटशाल्मली वृक्ष है। और मेरी आत्मा ही स्वर्ग की कामदुग्धा धेनु तथा नंदनवन है।
___ अप्पा कत्ता विकत्ताय दुहाण य सुहाण य ।
अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठिय सुपट्ठिओ ॥ आत्मा स्वयं अपने दुःख और सुख का कर्त्ता एवं भोक्ता है । वही सुमार्ग पर चलाने वाला अपना मित्र है, और कुमार्ग पर ले जाने वाला अपना शत्रु है।
अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो ।
अप्पा दन्तो सुही होइ अस्सिं लोए परत्थ य ॥ वास्तव में अपने आप को दमन करना अत्यन्त कठिन है, उसी का दमन करना चाहिए। अपने आप को दमन करने वाला व्यक्ति इसलोक और परलोक दोनों में सुखी रहता है।
वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेण य ।
माऽहं परेहिं दम्मतो बन्धणेहिं वहेहि य ॥ दूसरे लोग मेरा वध-बन्धनादि से दमन करें, इसकी अपेक्षा मैं संयम एवं तप द्वारा स्वयं अपना दमन करूं, यह अच्छा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org