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________________ राज्य संग्रहालय की महावीर प्रतिमाएँ राज्य संग्रहालय, लखनऊ में तीर्थंकर महावीर की अनेक प्रस्तर सतिमाए संग्रहीत हैं, जो या तो कायोत्सर्ग (खड्गासन) मुद्रा में, या पद्ममासनस्थ (बैठी हुई ध्यानस्थ), दोनों रूपों में हैं। संग्रहालय में संग्रहीत कलाकृतियों में काल की दृष्टि से भगवान महावीर का सर्व प्राचीन अंकन उनकी पूजा के हेतु स्थापित शिलाफलक या आयागपट्ट (जे० २४८) में प्राप्त है, जिस पर "नमो अर्हतो महावीरस्य......" अभिलिखित है। इस आयागपट्ट के केन्द्र में उत्कीर्ण धर्मचक्र के द्वारा प्रतीक रूप से भगवान महावीर की उपस्थिति सूचित की गयी है। एक अन्य खण्डित आयागपट्ट (जे० २५६) पर "नमो अर्हतो वर्धमानस्य............" उत्कीर्ण हैं। एक स्तम्भ (जे० २६८) पर सिंह ध्वज का अंकन है। उस पर उसकी प्रदक्षिणा करते हुए स्त्री-पुरुष भी अंकित हैं। इस सिंहध्वज में सिंह द्वारा, जो तीर्थंकर महावीर का विशिष्ट लांछन है, उनकी उपस्थिति सूचित की गयी है। एक अन्य फलक (जे. १) में पूजा के हेतु जाती हुई एक उपासिका अंकित है और "नमो अहंतो वर्धमानस" लेख है। 'वर्धमान' एवं 'महावीर' विलिखित कुषाणयुगीन बैठी अथवा खड़ी, खण्डित या अखिण्डत प्रतिमाए (जे०२, ५,९,१४,१६ और ३१) विशेष उल्लेखनीय हैं। इनमें से कुछ प्रतिमाओं पर तो कुषाण शासकों के नाम एवं शासन वर्ष भी उल्लिखित हैं, जिनके कारण उन प्रतिमाओं का ऐतिहासिक महत्व भी बहुत है। लेख अथवा लांछन (परिचय चिन्ह) से युक्त भगवान महावीर की कोई गुप्तकालीन प्रतिमा संग्रहालय में नहीं हैं, किन्तु मथुरा से ही प्राप्त जे० ११८, जे० १०४ तथा सीतापुर से प्राप्त ओ० १८१ को भ० महावीर की गुप्तकालीन प्रतिमाओं के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इनमें से जे० ११८ तो अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी है। । यों तो संग्रहालय में गुप्तकालीन एवं मध्यकालीन चौबीसी-पट्ट भी हैं, परन्तु उन सभी में मूल नायक प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ हैं-गौंण रूप से महावीर का अंकन अवश्य है। संवत १०८० की अभिलिखित सर्वतोभद्रिका प्रतिमा (जे० २३६) उल्लेखनीय है । उस पर आचार्य विजय सिंहसूरि और श्री जिनदेवसूरि तथा स्वयं भगवान बर्द्धमान के नाम अंकित हैं। इस चौमुखी प्रतिमा में चारों ओर भगवान वर्द्धमान का ही अंकन है। संवत १२२३ की सिंह लांछन से युक्त लेखांकित पद्ममासनस्थ भूरे पाषाण की महावीर प्रतिमा (जे०७८२) इटावा जनपद से प्राप्त हुई। श्रावस्ती(जिला बहराइच) से प्राप्त पंचतीर्थी (जे.८८०) में भगवान महावीर का लांछन अंकित है और अभिलेख संवत् ११३४ का है। इस मूर्ति के सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय तथ्य यह है कि उसमें "वीरनाथ" के नाम से भगवान महावीर का परिचय दिया गया है। उस पर आचार्य रामसिंह का भी नामोल्लेख है। श्रावस्ती से ही प्राप्त एक त्रितीर्थी (जे. ८७५) में सिंह लांछन युक्त महावीर की ध्यान मुद्रा की प्रतिमा है। लेख अस्पष्ट है । कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित, प्रभामण्डल रहित, श्याम पाषाण की एक महावीर प्रतिमा (जी. ३१८) महोबा (जिला हम्मीरपुर) से प्राप्त हुई । लेख से प्रकट है कि उसकी प्रतिष्ठा संवत १२८३ के आषाढ़ मास में हुई थी। काले पाषाण की, सिंह लांछन युक्त, दिगम्बर (नग्न), अखण्डित तथा प्रभामण्डल से युक्त महावीर प्रतिमा (जे. ८८७) पर संवत १२३६ तथा 'मूल नायक को साधु माडू नमन करता है' लिखा है ।। उत्तर प्रदेश के पौराणिक तीर्थ स्थान नेमिषारण्य-मिसरिख (जिला सीतापुर) से प्राप्त पीतवर्ण पाषाण की एक मध्ययुगीन प्रतिमा (ओ. १८२) की पीठिका पर सिंह लांछन खचित है । इस महावीर प्रतिमा की मुख छवि तेजस्वितापूर्ण है। नेमिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर चौक लखनऊ से हाल में ही भेंट स्वरूप प्राप्त प्रतिमा (७२-४) की पीठिका पर "संवत..................४ बुधवासरे २० चन्द्रमाह" तथा प्रतिमा के पृष्ठ भाग में "वर्द्धमानमंगल प्रतिमा अंकित हैं । संवत की वर्ष संख्या स्पष्ट पढ़ने में नहीं आती। प्रतिमा मध्यकालीन है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश राज्य संग्रहालय लखनऊ में ई० सन् के प्रारम्भ काल से लेकर मध्यकाल पर्यन्त की महावीर प्रतिमाओं की एक अच्छी शृंखला सुरक्षित है। -डा० नीलकण्ठ पुरुषोत्तम जोशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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