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उत्तर प्रदेश में जैनों की वर्तमान स्थिति
-श्री रमाकान्त जैन
चौबीस में से अठारह तीर्थंकरों की जन्मभूमि होने का गौरव पाने वाला भारतीय गणतन्त्र का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे विशाल यह राज्य उत्तर प्रदेश इतिहास काल के प्रारम्भ से ही आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ और तदनन्तर हुए तेइस अन्य तीर्थंकरों के अनुयायियों से युक्त रहा है। वर्तमान में मुख्यतया वैश्य वर्ण में सीमित जैनमतावलम्बी इस प्रदेश में अग्रवाल, ओसवाल, खन्डेलवाल, खरौआ, जैसवाल, परवार, पल्लीवाल, गंगवाल, गंगेरवाल, गोलालारे, पद्मावती पुरवाल, बुढ़ेलवाल, लमेचू, श्रीमाल आदि विभिन्न जातियों के हैं। दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानक वासी, तेरापन्थी इत्यादि जैन धर्म के वर्तमान सभी सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों के भक्त श्रावक इस प्रदेश में निवास करते हैं । यह अवश्य है कि उन सब में दिगम्बर सम्प्रदाय वालों की संख्या सर्वाधिक है। अहिंसा परमोधर्मः को मानने वाले परम शाकाहरी और अणुव्रतों का यथाशक्ति अनुपालन करने वाले जैनी जन यद्यपि यहाँ मुख्यतया व्यापार एवं उद्योग-धन्धों में रत हैं, किन्तु इन्जीनियरिंग, डाक्टरी, वकालत और शिक्षण कार्य करने वालों में उनकी संख्या कम नहीं है। राजकीय सेवा में भी विभिन्न विभागों और ओहदों पर वे पदासीन हैं-शायद ही कोई ऐसा विभाग हो जहाँ जैन न हों। इनमें अनेक त्यागी-व्रती, समाज सुधारक, देशभक्त स्वतन्त्रता सेनानी, साहित्य मनीषी, विद्वान, विचारक और पत्रकार भी हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों में लब्ध प्रतिष्ठ हैं। विद्या का ॐ नमः न कर पाने वाले दुर्भाग्यशालियों की संख्या जैनों में नगण्य है और उनकी सम्पन्नता के सौभाग्य की ख्याति उन्हें दूसरों की ईर्ष्या का पात्र बनाती रही है। तभी तो किंग्सले डेविस ने अपनी पुस्तक "पापुलेशन ऑफ इण्डिया एण्ड पाकिस्तान" में जनगणना सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि जनसंख्या के आधार पर जैन धर्म भारत का छठा बड़ा धर्म है और साक्षरता की दृष्टि से जैन धर्मानुयायी इस देश में तीसरे स्थान पर हैं तथा सम्पन्नता की दृष्टि से भी पारसी और यहूदियों के उपरान्त इन्हीं का स्थान है ।
वर्तमान में इस प्रदेश में कितने जैनी-जन कहां-कहां निवास करते हैं इसकी सूचना हमें जनगणना के आंकड़ों से मिलती है। भारत सरकार द्वारा हर दस वर्ष पर सम्पूर्ण देश में कराई जाने वाली जनगणना के आंकड़ों को देखने से विदित होता है कि ५० वर्षों में, सन् १९२१ ई० की जनगणना से सन् १९७१ ई० की जनगणना पर्यन्त, इस प्रदेश में जैनों की संख्या ६८,१११ से बढ़कर १,२४,७२८ हो गई। यह संख्या सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या, जो १९७१ ई० में ८,८३,६४,७७९ थीं, का केवल ०.१४ प्रतिशत होते हुए भी अनुयायियों की संख्या के
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