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________________ *MMMMMMM अकसायतु चरितं कसायवसगदो असंजदो होदि । उवसह जम्हि काले, तज काले संजदो होदि ॥ कषायरूप विकारों का अभाव ही चारित्र है । जो कषायों के दशीभूत होता है, वह असंयमी होता है । जिस समय कषाय विकार उपाशान्त हो जाते हैं, तभी संयमभाव: प्रकट होता है । तं वत्थं मुव्यं जं पडिउपज्जये कसथिग्गी । तं वत्युं मल्लिरज्जो जत्थुवसम्म कसायाणं || जिस वस्तु या स्थिति से कषाय उत्पन्न हो उसे छोड़ना चाहिए, और जिससे कषाय शान्त हों, उसका सम्बन्ध मिलाना चाहिये । for अणूदो अप्पं आयासादो अणूणयं णत्थि । जह तह जाण महल्लं ण वयमहिंसासमं अस्थि ॥ इस संसार में जिस प्रकार परमाणु से छोटी कोई वस्तु नहीं है और आकाश से बड़ा कोई द्रव्य नहीं है, उसी प्रकार अहिंसा से बड़ा कोई व्रत नहीं है । सव्वेसिमासमाणं हिदयं गब्भो व सव्वसत्थाणं । सव्वेसि वदगुणाणं पिंडोसारो अहिंसादु || अहिंसा (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ आदि) सब आश्रमों का हृदय है, समस्त शास्त्रों का गर्भ है, और समस्त व्रतों एवं गुणों का एकत्र सार है । Jain Education International उच्चायं सोलेसुवदेसु य अहिंसा यह अहिंसा अखिल शीलों (सदाचारों) और व्रतों में सर्वोच्च है । जीवसितस्स सव्वेवि णिरत्थया होंति हिंसक व्यक्ति के समस्त धर्म-कर्म निरर्थक होते हैं । अहिंसाए विणा ण सीलाणि ठंति सव्वाणि अहिंसा के बिना कोई भी शील ( धर्म, सदाचार) स्थित नहीं रह सकता | अत्ताचेव अहिंसा शुद्ध आत्मा ही अहिंसा है। एसा सा भगवइ ऐसी यह भगवती अहिंसा है । For Private & Personal Use Only VEDEO www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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