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१९२१-४२ राष्ट्रीयता की एक अजब लहर थी, जिसमें मेरठ शहर एवं सदर के अन्य अनेक जैन युवकों एवं प्रौढ़ों ने तथा कई महिलाओं ने भी उत्साह के साथ भाग लिया था।
बा० कामता प्रसाद मुख्तार बड़ौत--बड़े क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे-हिंसक आंदोलन में भी उनका सक्रिय योग रहा, जेल यात्रा भी की। कस्बे बड़ौत के कई अन्य जैनों ने भी कांग्रेस आंदोलन में भाग लिया।
पं० शीलचन्द न्यायतीर्थ, मवाना-ने १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में डटकर भाग लिया और पुलिस को चकमा देने में सफल रहे । मवाना तहसील के आप तभी से प्रमुख कांग्रेसी कार्यकर्ता रहते आये हैं ।
ला० चतर सेन खदर वाले सरधना--भी शुद्ध खादीधारी एवं कांग्रेस के अच्छे कार्यकर्ता रहे हैं । सेठ भगवती प्रसाद जैन हापुड़-भी कांग्रेस के अच्छे कार्यकर्ता रहते आये हैं।
खेकड़ा के निकट बड़ा गांव के युवक शीतल प्रसाद ने स्याद्वाद विद्यालय वाराणसी के छात्रों द्वारा १९४२ में किये गये उग्र आंदोलन में अग्रणी भाग लिया था और पुलिस के हाथों भीषण यंत्रणाएं सही थीं।
__ महात्मा भगवानदीन जी-उत्तर प्रदेश के ही मूलतः निवासी पल्लीवाल जैन थे और हस्तिनापुर (जिला मेरठ) में श्री ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम की स्थापना (लगभग १९१४ ई०) के साथ ही उसके अधिष्ठाता हुए थे और तब भी 'महात्मा' कहलाते थे । भरी जवानी में ही गृहस्थी से विरक्त होकर राष्ट्र और जनता की सेवा का उन्होंने व्रत ले लिया था और सन् १९१८ में ही, शायद अन्य सब कांग्रेसियों से पहले, विदेशी शासन के विरोधी विचारों एवं कार्यों के लिए जेल गये थे। राष्ट्रपिता गांधी जी से शायद पहले से ही 'महात्मा' कहलाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के यह अपने ढंग के अनोखे त्यागी एवं निस्पृह महात्मा थे। उनका पूरा जीवन जन सामान्य की सेवा में बीता। उनके भागिनेय, प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार हस्तिनापुर के उक्त ब्रह्मचर्याश्रम के प्रारंभिक छात्रों में से थे और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत रहे हैं तथा उसके कारण जेल यात्रा भी की है।
सहारनपुर जिला
श्री ज्योति प्रसाद जैन 'प्रेमी' देवबन्द -'जैन प्रदीप' (उर्दू) के यशस्वी संपादक श्री ज्योति प्रसाद 'प्रेमी' ने १९२०-२१ के असहयोग आन्दोलन में बड़े उत्साह के साथ सक्रिय भाग लिया । काँग्रेस-संगठन को मजबूत बनाने, तिलक स्वराज्य फंड का चन्दा एकत्र करने और जोशीले भाषण देने में अपने क्षेत्र में अग्रणी थे। गिरफ्तार भी हए। १९३० के आन्दोलन को उनसे बल मिला। अपने पत्र 'जैन प्रदीप' में वे बराबर राष्ट्र के साथ रहे, 'भगवान महावीर और गान्धी' लेख पर मांगी जमानत के कारण ही 'जैन प्रदीप' बन्द हुआ था। मृत्यु पर्यन्त वे खादी पहनते रहे और उसके लिए सदैव युवकों को प्रोत्साहित करते रहे।
बाबू झूमन लाल जैन, सहारनपुर-१९२० में अपनी चमकती वकालत को छोड़कर वे राजनीति में आये, अन्त तक कांग्रेस के साथ रहे। स्पष्ट वक्ता, पैने लेखक और संयमी कार्यकर्ता थे । सन् १९३२ में उन्होंने जेल यात्रा भी की।
श्री हंस कुमार जैन-१७-१८ साल की उम्र में ही, १९३० में रुड़की छावनी में फोजों को भड़काने के अपराध में उन्हें ४ साल की सख्त कैद की सजा सुनाई गई। १९३२ और १९४२ में भी वे जेल गये और सदैव वहाँ का कठोर वातावरण उनकी बंशी-ध्वनि और मधुर रागों से थिरकता रहा। अपने पिता बाबू झूमन लाल जी की तरह वह भी निस्पृह और सरल रहे।
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