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________________ [ ५१ परान्त विहार करके अहिच्छता की भीमाटवी में पहुंचने के पूर्व भी वह कुछ समय इस स्थान पर तिष्ठे और तपस्या की थी । अतएव यह उनकी तपोभूमि और देशनाभूमि रही प्रतीत होती है । मथुरा 'भविमाण पुण्णरिद्धी जा जायइ महरतित्थ जत्ताए' -विविध तीर्थ कल्प उत्तर प्रदेश में यमुनातटवर्ती मथुरा ब्रजमण्डल की मुकुटमणि है। हिन्दू, जैन और बौद्ध अनुश्रुतियों में जिन प्राचीनकालीन सोलह महाजनपदों, या अट्ठारह महाराज्यों अथवा साढ़े पच्चीस आर्यदेशों के उल्लेख मिलते हैं उन सब में शूरसेन या शौरसेन देश की भी गणना की गयी है। मथुरा इसी शौरसेन जनपद की राजधानी थी, इतना ही नहीं, वह प्राचीन भारतवर्व की प्रसिद्ध दश राजधानियों अथवा प्रमुख महानगरियों में गिनी जाती थी। इस मथुरा के अनुकरण पर ही दक्षिण भारत के पाण्ड्य देश की राजधानी मदुरा या मधुरा कहलाई। इन दोनों में परस्पर भेद करने के लिए प्राचीन जैन साहित्य में बहुधा उन्हें उत्तर मथुरा एवं दक्षिण मथुरा नामों से सूचित किया गया है। __पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार अति प्राचीन काल में सुप्रसिद्ध हरिवंश का इस प्रदेश पर आधिपत्य था । इसी वंश के शूर या शूरसेन नामक राजा के नाम से इस देश का शौरसेन नाम प्रसिद्ध हुआ और इस प्रदेश की भाषा भी शौरसेनी कहलाई। मयुरा नगर का वास्तविक निर्माता भी सम्भवतया यही नरेश था। हरिवंश की एक प्रधान शाखा यदुवंश थी । कालान्तर में इस शाखा का ही शौरसेन प्रदेश से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा । महाभारतकाल में यदुवंशियों की प्रधान राजधानी वर्तमान आगरा के निकट शौरीपुर में थी । यद्यपि कुछ समय पश्चात् उसका परित्याग करके यादव लोग पश्चिम तटवर्ती द्वारकापुरी में जा बसे थे, किन्तु इस देश के साथ उनका सम्बन्ध बना रहा । मथुरा में शूर के अनुज सुवीर के पौत्र और भोजकवृष्णि के पुत्र उग्रसेन का राज्य था। यह राजा नारायण कृष्ण का मातामह था। स्वयं कृष्ण की जन्मभूमि एवं बाललीला भूमि भी मथुरा ही थी। उग्रसेन के आततायी पुत्र कंस का उच्छेद करके कृष्ण ने ही उग्रसेन को फिर से मथुरा के सिंहासन पर स्थापित किया था, और उग्रसेन के वंशज जो उग्रवंशी भी कहलाये, मथरा में मौर्यकाल पर्यन्त राज्य करते रहे। मगध साम्राज्य के उत्कर्ष काल में मथुरा का राज्य नन्दों और मौर्यों का करद राज्य रहा प्रतीत होता है। शंगकाल में पश्चिमोत्तर दिशा से यवनों (यूनानियों) के आक्रमण प्रारम्भ हो गये और उनके शासक दमिन एवं मिनेन्दर ने २री शती ई०पू० में सम्भवतया मथुरा पर भी अधिकार कर लिया था। प्रथम शती ई०पू० के मध्य के लगभग शक जाति ने इस नगर पर अधिकार कर लिया और लगभग एक सौ वर्ष पर्यन्त शक महाक्षत्रप मेवकि, रज्जुबल, शोडास आदि ने यहां शासन किया। उनके उपरान्त पहलवों (पार्थियनों) का भी कुछ काल र रहा हो सकता है । प्रथम शताब्दी ईस्वी के अन्तिम पाद से लेकर लगभग ३री शती ई० के मध्य तक कुषाण नरेशों का मथुरा में शासन रहा । तदनन्तर नागों एवं वकाटकों का प्रभुत्व रहा और ४थी शती ई० के मध्य से लेकर ७वीं शती ई० के प्रारम्भ तक मथुरा गुप्त साम्राज्य का अंग रही, जिसके पश्चात् कुछ दिन हूणों का भी अधिकार रहा । सन् ५३१ ई० के लगभग मालवा नरेश यशोधर्मन के हाथों हूण नरेश मिहिरकुल की पराजय के उपरान्त मथुरा में फिर से किसी प्राचीन भारतीय वंश का, सम्भवतया उग्रवंश की किसी शाखा का, राज्य स्थापित हो गया और ७वीं शताब्दी में इस वंश के जिनदत्तराय नामक एक राजकुमार के दक्षिण भारत में चले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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