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________________ महावीर वचनामत ! धम्मो मंगलमुक्किट्ठे धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है-सबका कल्याणकर्ता है। लोगस्ससारं धम्मो लोक का-मनुष्य-जीवन का सार धर्म है । धम्मो वत्थु-सहावो वस्तु-स्वभाव का नाम धर्म है-जो जिस पदार्थ का स्वभाव है, वही उसका धर्म है। ___ समियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए श्रेष्ठ महापुरुषों ने समभाव में धर्म बताया है । मोहक्खोह विहीणो परिणामो अप्पणो धम्मो मोह एवं क्षोभ से रहित आत्मा का परिणाम ही धर्म है । दुविहे धम्मे-सुयधम्मे चेव चरित्तधम्मे चेव धर्म के दो रूप हैं-श्रुत अर्थात ज्ञान या तत्वज्ञान और चारित्र अर्थात् आचरण । रयणत्तय च धम्मो . और, धर्म रत्नत्रय (समीचीन श्रद्धान, ज्ञान एवं आचरण)-रूप है। चत्तारि धम्मदारा-खंती मुत्ती अज्ज्वेमद्दवे धर्म के चार द्वार हैं-क्षमा, शौच (संतोष), सरलता और मृदुता । दसणमूलो धम्मो धर्म का मूल दर्शन (समीचीनः दृष्टि या सम्यक्त्व) है । तच्चरइ सम्मत्तं तत्व में रुचि होने का नाम सम्यक्त्व है। HTTAMATTATRA *- TO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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