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________________ इसी रत्नपुर के कुरुवंशी नरेश भानु की महादेवी सुप्रभा ने माघ शुक्ल १३ के शुभ दिन तीर्थंकर धर्मनाथ को जन्म दिया था। इन्होंने भी राज्य का उपभोग किया, वैराग्य लिया, तप किया और केवल ज्ञान प्राप्त करके धर्म प्रचार किया था। इनका तप एवं ज्ञान स्थान रत्नपुरी का निकटवर्ती शालवन नामक उद्यान था। धर्म यस्मिन समुद्भूता धर्मदश सुनिर्मलाः । स धर्मः शर्म मे दद्यावधर्मपहत्य मः॥ हस्तिनापुर अथास्मिन मारतेवर्षे विषयः कुरुजाङ्गलः । आर्यक्षेत्रस्य मध्यस्थः सर्वधान्याकरो महान् ॥ हास्तिनाख्यापुरी तस्य शुमा नामिरिवावमौ । भृशं देशस्य देहस्य महती मध्यवतिनी ।। -उत्तरपुराण मागीरथी सलिल संग पवित्रमेतत् । जीयाच्चिरं गजपुरं भुवितीर्थरत्नम् ॥ हस्तिनापुर मित्याहुरनेकाश्चर्य सेवधिम् ।। -वि० ती० कल्प पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की मवाना तहसील में, मेरठ नगर से लगभग २० कि० मी. उत्तर तथा मवाना से ८ कि० मी० दूर स्थित, वनखंड के मध्य ऊँचे-नीचे टीलों की श्वखला तथा जैन मंदिरों से युक्त वर्तमान हस्तिनापुर उस प्राचीन पुराण एवं इतिहास प्रसिद्ध महानगरी का प्रतिनिधित्व करता है जो भारत की आद्य महानगरियों में परिगणित, सोम-पुरु-भारत-कुरु आदि क्षत्रियवंशों की रङ्गस्थली, तीर्थंकरों की जन्म एवं तपोभूमि, अनेक चक्रवर्ती सम्राटों के साम्राज्य का हृत्स्थल, कौरव-पांडव द्वन्द्व की रंगभूमि, विविध संस्कृतियों का पावन संगम, आर्यक्षेत्र के मध्यभाग में भारतवर्ष के कुरुजांगल विषय (कुरु महाजनपद) की नाभिरूप, पुण्तोया भागीरथी-गंगा के तीर पर स्थित, सर्वप्रकार के धन-धान्य से पूर्ण, अनेक आश्चर्यों का आगार और तीर्थरत्न रही है । इसके अपर नाम गजपुर, नागपुर, ब्रह्मस्थल और आसंदीवत प्राप्त होते हैं, किन्तु लोकप्रिय एवं प्रचलित नाम हस्तिनापुर ही है। वर्तमान शती के पुरातात्त्विक उत्खनन एवं खोज-शोध ने इस नगरी के अस्तित्त्व तथा उसकी संस्कृति के ज्ञात प्राथमिक चरणों को प्राग्गैदिक ताम्रयुगीन सिन्धुघाटी सभ्यता का समसामयिक सिद्ध कर दिया है । कम से कम महाभारत काल के उपरान्त वर्तमान पर्यन्त यह नगरी कई बार उजड़ी, फिर बसी और पुनः उजड़ी, किन्तु जैनों ने इसे अपना पवित्र तीर्थ स्थान मानकर इसके साथ अपना सम्पर्क प्रायः अविच्छिन्न रूप से बनाये रखा। जैन परम्परा के अनुसार युग के आदि में अयोध्या और काशी के साथ ही गजपुर (हस्तिनापुर) की रचना देवों द्वारा हुई थी-इस क्षेत्र में हाथियों का बाहुल्य होने कारण इस नगर का नाम गजपुर रखा गया। ऋषभदेव के गंशज कुरु के नाम से यह प्रदेश कुरुजांगल देश कहलाया, और भारतवर्ष के आदि चक्रवर्ती सम्राट 'भरत (ऋषभपुत्र) के अनुज बाहुबलि का पुत्र सोमयश (सोमप्रभ) गजपुर का प्रथम नरेश हुआ-उसी से क्षत्रियों का चन्द्रवंश चला। कहा जाता है कि इस सोमयश को ही भगवान ने कुरु नाम प्रदान किया था। दीक्षा लेने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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