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________________ [ ३९ चन्द्रपुरी चन्द्रपुरी अपरनाम चन्द्रपुर, चन्द्रावती, चन्द्रानन और चन्द्रमाधव की वाराणसी से लगभग २० कि० मी. दूर गंगातट पर बसे हुए तन्नाम गांव से पहचान की जाती है। इस नगर के इक्ष्वाकुवंशी, काश्यपगोत्री महाराज महासेन की महादेवी लक्ष्मणा के गर्भ से आठवें तीर्थंकर चन्द्रनाथ (चन्द्रप्रभु) का जन्म हुआ था। इसी स्थान में उनके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणक हुए थे। गंगातट पर सुरम्य प्राकृतिक वातावरण के मध्य भगवान चन्द्रनाथ का मंदिर बना है, पास ही चन्द्रावती गाँव में भी उनका एक मंदिर है। प्रतिवर्ष हजारों जैन तीर्थयात्री यहाँ दर्शनार्थ आते रहते हैं । वाराणसी से बस द्वारा चन्द्रपुरी पहुंचा जाता है। काकंदी नवम् तीर्थंकर पुष्पदन्त की पवित्र जन्मभूमि की पहचान पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में नौनखार रेल स्टेशन से लगभग ३ कि० मी० दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित खुखुन्दो नामक छोटे से ग्राम से की जाती है। गांव के बाहर घने जंगल के बीच कई बड़े-बड़े तालाब और तीस छोटे-बड़े टीले लगभग २ कि. मी० के विस्तार में फैले पड़े हैं, जो प्राचीनकालीन महानगरी काकंदी के ही मन्दिरों, भवनों आदि के भग्नावशेष हैं। खखन्दों के निवासी एवं शिवाजी इण्टर कालेज के प्रवक्ता पं. रामपूजन पाण्डेय ने अपनी पुस्तक 'अथ ककुत्स्थ-चरित्र' में यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि तीर्थंकर पुष्पदन्त का ही अपर नाम ककुत्स्थ था, वह मनुपुत्र इक्ष्वाकु के निकट गंशज थे, उन्होंने यह काकुत्स्थनगरी, जो काकंद नगरी भी कहलाई, बसाई थी, और यही राजा दशरथ (महाराज रामचन्द्र के पिता) पर्यन्त उनके गंशजों की जन्मभूमि रही । अपने मत की पुष्टि पाण्डेय जी ने ब्राह्मणीय पुराणों एवं अन्य ग्रन्थों से की है। इस नगरी का एक अन्य नाम किष्किधापुर भी मिलता है। किन्तु मूल एवं लोकप्रिय नाम काकन्दी या काकंदनगर ही रहा प्रतीत होता है-उसी का बिगड़कर खुखुन्द या खुखुन्दो बन गया। जैन मान्यता के अनुसार काकंदी नगरी के इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री क्षत्रिय नृप सुग्रीव की पटरानी जयरामा की कुक्षि से मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा के दिन भगवान पुष्पदन्त का जन्म हुआ था, वहीं उन्होंने चिरकाल ,पर्यन्त राज्य किया, और एक दिन उल्कापात के दृश्य को देखकर संसार से विरक्त हुए तथा पुत्र सुमति को राज्य भार सौंपकर निकटवर्ती पुष्पकवन में तपश्चरण किया। उनका प्रथम पारणा शैलपुर के राजा पुष्पमित्र के घर हुआ, और तदनन्तर उसी दीक्षावन में एक नागवृक्ष के नीचे उन्हें केवलज्ञान हुआ था। तिलोयपण्णति, वरांगचरित, उत्तरपुराण, आशाधरकृत त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र आदि ग्रन्थों से उपरोक्त तथ्य प्रमाणित हैं। भगवती आराधना और बृहत्कथाकोष में अभयघोषमुनि की कथा प्राप्त होती है, जिन्हें काकंदी नगरी में उनके गैरी चण्डवेग ने सर्वांग छेदछेदकर मारणान्तक उपसर्ग किया था, और फलस्वरूप उक्त मुनिराज ने सिद्धत्त्व प्राप्त किया था। नायधम्मकहा में काकंदी नगरी के एक व्यापारी की कथा आती है जो बड़े-बड़े जलपोतों को लेकर व्यापारार्थ रत्नद्वीप गया था. किन्तु भयंकर समुद्री तूफान में उसके जहाज नष्ट हो गये थे और वह जैसे-तैसे प्राण बचाकर घर वापस लौटा था। इन उल्लेखों से पता चलता है कि किसी समय काकंदी एक अत्यन्त समृद्ध नगरी थी; न तीर्थंकर के चार कल्याणकों की पुण्यस्थली होने के कारण पवित्र तीर्थस्थान एवं सांस्कृतिक केन्द्र भी बन गई। खुखुन्दो के उपरोक्त टीलों एवं खण्डहरों का पुरातात्त्विक सर्वेक्षण १८६१-६२ ई० में जनरल कनिंघम ने किया था, जिसमें उसे यहां के प्राचीन जैन एवं शैव चैष्णवादि मन्दिरों की विपुल सामग्री प्राप्त हुई थी। जैन अवशेषों में टीले-बी० से प्राप्त शिशु तीर्थंकर आदिनाथ सहित कल्पवृक्ष के नीचे बैठे नाभिराय एवं मरुदेवी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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