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जम्बूप्रसाद सहारनपुर, साहु सलेखचन्द एवं रा०ब० जुगमन्दर दास नजीबाबाद इत्यादि । विभिन्न क्षेत्रों के अनगिनत महानुभाव रहे । उत्तर प्रदेश के जैनधर्म, संस्कृति और समाज का जैसा कुछ भवन वर्तमान है, इस युग में उसकी नींव बनकर उसके पुननिर्माण का श्रेय उपरोक्त तथा तद्प्रभृति सज्जनों को ही है।
अस्तु सभ्य युग के आदिम काल से वर्तमान पर्यन्त महादेश भारतवर्ष के सांस्कृतिक हृत्प्रदेश इस उत्तर प्रदेश का जैन धर्म और उसकी संस्कृति के साथ अविच्छिन्न घनिष्ठतम सम्बन्ध रहता आया है। प्रदेश के सौभाग्यदुर्भाग्य, उत्थान-पतन, सुख-दुख को प्रदेश के जैनों ने सदैव से उसके अभिन्न अंग के रूप में भोगा है और सदैव भोगेंगे। प्रदेश के जनजीवन और राष्ट्रीय जीवन के वे अभिन्न अंग हैं और रहेंगे। उनकी संस्कृति समृद्ध है और धर्म एवं दर्शन प्राणवान हैं
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है। जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग तो सारा जाने है ।।
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