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________________ [ २७ (आगरा), कवि भूधरमल्ल या भूधरदास (आगरा), जयपुर के सुप्रसिद्ध वचनिकाकार पं० दौलतराम भी कुछ समय आगरा में रहे, भट्टारक ललितकीर्ति, भ० सुरेन्द्र भूषण, पांडे हरिकृष्ण, केशोदास, पांडे लालचन्द, नथमल बिलाला, विलासराय, कवि देवदत्त, इन्द्रजीत, गुलाबराइ, झुनकलाल, प्रागदास, मनसुखसागर, भूधर मिश्र, कमल नयन, सदानन्द, हीरालाल, सन्तकवि पं० दौलतराम, नन्दराम, छत्रपति आदि । आधुनिक युग १८५७ से १९४७ ई० पर्यन्त के समय को आधुनिक युग ही कह सकते हैं, जिसका प्रारम्भ १८५७ ई० के स्वातन्त्र्य समर की विफलता के परिणामस्वरूप प्रदेश में अंग्रेजी शासन की पूर्णतया स्थापना से होता है । उक्त समर का, जिसे इतिहास पुस्तकों में बहुधा गदर या सिपाहीविद्रोह कहा गया है, प्रधान रणक्षेत्र उत्तर प्रदेश ही था, और प्रदेश के निवासी जैनों ने भी उसके कुफल एवं सुफल भोगे तथा उसमें योग भी दिया। एक ओर देश विदेशी दासता में बंधा और शासकों ने अपने देश और जाति के हित में उसका भरपूर शोषण किया, तो दूसरी ओर चिरकाल के उपरान्त पुनः जनता ने सुख-शान्ति की सांस ली। सुचारु शासन व्यवस्था, न्याय प्रशासन, धनजन की सुरक्षा, व्यापार आदि की उन्नति, शिक्षा का प्रचार-प्रसार, धार्मिक स्वतन्त्रता, सामाजिक सुधार, राष्ट्रीय भावना की जागृति और स्वतन्त्रता के लिए छिड़ा चिरकालीन संघर्ष- इस युग की प्रयुख विशेषताएं रहीं। उद्योगधन्धों और यातायात एवं संचार के साधनों में द्रुत विकास, छापेखाने का प्रचार, समाचार पत्रों का प्रकाशन और राष्ट्रीय, सामाजिक एवं धार्मिक जागृति के उद्भावक प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में अनेक सच्चे नेताओं का उदय सबने मिलकर देश के सर्वतोमुखी पुनरुत्थान की साधना में योग दिया। उत्तर प्रदेश की जैन समाज ने भी उपरोक्त सभी सद्प्रवृत्तियों में अपने आन्तरिक उत्थान के हित भी, और प्रदेश एवं राष्ट्र के सार्व उत्थान के लिए भी, अपनी संख्या एवं शक्ति के अनुपात में पर्याप्त योग दिया और परिणामों का लाभ उठाया। विविध प्रकार के अनेक संगठन, सभाएँ, संस्थाएँ स्थापित की, सुधार आन्दोलन चलाकर अनेक सामाजिक कुरीतियां दूर की। जहाँ कहीं भी जैनों की तनिक भी अच्छी बस्ती रही, एकाधिक समाजसेवी, धर्मप्रेमी, शिक्षा प्रचारक नेता और कार्यकर्ता हुए। उनमें त्यागी संत भी थे यथा यति नयनसुखदास, ब्र० भगवानदास, ब्र० शीतल प्रसाद, पं० गणेश प्रसाद वर्णी, बाबा भागीरथ वर्णी, बाबा लालमनदास, महात्मा भगवान पुरानी शैली के शास्त्री पं० भी थे, यथा पं० वृन्दावनदास, पं० बलदेवदास पाटनी, गुरु गोपालदास बरैया, पं० पन्ना लाल न्यायदिवाकर, पं० उमराव सिंह, पं० माणिक चन्द्र, पं० नरसिंहदास, पं० श्रीलाल आदि; पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त समाजचेता यथा राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद, बाबू दयाचन्द गोयलीय, बैरिस्टर जगमन्दर लाल जैनी, बैरिस्टर चम्पतराय, मास्टर चेतन लाल, मुंशी मुकुन्दराय, बाबा सूरजभान वकील, पं० जुगल किशोर मुख्तार, जोती प्रसाद 'प्रेमी', भोलानाथ दरख्शा, बाबू सुल्तान सिंह वकील, बाबू ऋषभदास वकील, बाबू अजित प्रसाद वकील, रा० ब० द्वारका प्रसाद इंजीनियर, डिप्टी कालेराय, डिप्टी नन्दकिशोर, डिप्टी उजागरमल आदि; सेठों में मथुरादास टड़या ललितपुर, मथुरा के सेठ रघुनाथदास और राजा लक्ष्मणदास, साहु चंडी प्रसाद धामपुर, लाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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