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________________ मांसाहार का दुष्परिणाम -डा. मोहन बोरा यह एक नितान्त थोथी धारणा है कि मांस-भक्षण से शरीर बलवान होता है। प्रोटीन और चर्बी की पूर्ति में इसे अनिवार्य तक माना जाने लगा है। किन्तु एक प्राकृतिक चिकित्सक के नाते मैं इसे बिल्कुल आवश्यक नहीं मानता तथा इसे हेय और घृणित मानता हूँ। मनुष्य को इतने अधिक प्रोटीन व चर्बी की आवश्यकता नहीं होती जितनी मांस में होती है । इस तरह प्रोटीन और चर्बी की अधिकता पाचन क्षेत्र में विखण्डन और दुर्गन्ध पैदा करती है और इस तरह अपच होता है । परन्तु शाकाहार यदि उचित रूप से लिया गया हो तो शरीर के लिए पर्याप्त प्रोटीन और चर्बी दे सकता है । संसार के बहुत से मनुष्य जिनका आहार शाक-शब्जी है, मांसाहार पर जीवित रहने वाले व्यक्तियों की तुलना में शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह से अधिक स्वस्थ रहते हैं। मांसाहारी होने की अपेक्षा शाकाहारी होना अधिक स्वास्थप्रद और मितव्ययी भी है। जो भोजन हम करते हैं उससे शरीर बनता है, इसलिए ऐसे भोजन का गुण नम्र और संयमित होना चाहिए। यदि भोजन पशु के मांस से संग्रहित किया जाता है तो निश्चित रूप से उसका प्रभाव भी विपरीत होत है। इस सन्दर्भ में मेरा विचार यह है कि हमें अपने बच्चों के आहार में किसी पशु का दूध भी नहीं रखना चाहिए। भावी पीढ़ी के नैतिक पतन को रोकने के लिए उनके मस्तिष्कों का निर्माण पशूओं (गाय, भैंस, भेड़, बकरी) के प्रोटीन से निर्मित न होने पाए। यद्यपि असीम काल से उत्तम गुणों के कारण दूध को शाकाहार माना जाता है पर यह भी मांसाहार जैसी अज्ञानता से मुक्त नहीं हो सकता । निःसन्देह यह समुचित शोध का विषय है। निश्चित रूप से कुछ शाकाहारियों के लिए यह एक भयावह और दुखद प्राकट्य है। भलाई और न्याय की भावना वाला सभ्य समाज का आदमी अपने मन में भोजन के लिए निरीह प्राणी को मारने की अनैतिकता नहीं पोष सकता। वह बहत ही प्रिय पशु का गला नहीं काट सकता। अगर ऐसा करने के लिए किसी पर दबाव डाला जाता है तो मांसाहारी स्वयं को दोषी अनुभव करेगा और मांस खाना छोड़ देगा। जहां तक परिणाम और मानवी चेतना पर प्रभाव का सम्बन्ध है, हत्या और कत्ल में कोई अन्तर नहीं है। पशुओं के भी मांस, हड्डियां और नाड़ी संस्थान आदि होते हैं, ठीक मनुष्य की तरह और इस तरह भोजन के लिए पशु का कत्ल और आदमी की हत्या में क्या अन्तर है ? पालतू सुअर जमीन की हर गन्दी चीज खाते हैं यहां तक कि आदमी और पशुओं का मलमू अपने गन्दे भोजन के कारण सूअर संसार में सबसे गन्दा पशु माना जाता है। उसकी कोशिकाएँ परान्नभोजी होती हैं, यह गिद्धों से भी अधम होता है, पर कुछ मांसाहारी इन सूअरों के मांस को भोजन में सम्मिलित करते हैं। पशु के मांस के पित्त सम्बन्धी तत्व रक्तचाप, कैंसर, गठिया और रक्तनलियों में रक्त का जमाव आदि बीमारियां पैदा करते हैं । मांसाहार का यही परिणाम होता है। पश्चिमी देशों में भी शाकाहारी संस्थाएँ हैं और वहां भी शाकाहारी आन्दोलन प्रगति कर रहा है। यहां यह कहना हास्यास्पद है कि महावीर, बुद्ध, गांधी व अन्य शाकाहारी ऋषियों की हमारी धरती पर मांसाहारी दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं। हमारी राष्ट्रीय सरकार भी बेकारी और खाद्य समस्याओं का हल निकालने के लिए देश में मुर्गी-फार्म, सूअर-फार्म, चरागाह-फार्म खोलने का प्रचार करती हैं।. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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