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________________ १६ ] निर्दोष मुर्गे द्वारा अद्भूत भयंकर भय, पीड़ा और अत्याचार को महसूस करना भी भयंकर रूप में कठिन था। जीवन सभी को प्रिय होता है। उस गरीब और असहाय पक्षी ने कैसा भय और संताप सहा, जब उसका जीवन नष्ट किया जा रहा था। मैं यह सोच कर ही काँप जाता हूँ। उसी क्षण मैंने किसी का जीवन न लेने की नैतिक महत्ता की संपूर्ण क्षमता को कठोर वास्तविकता और सर्वांगीण गम्भीरता के साथ महसूस किया । मैं मार दिये गये मुर्गे के प्रति करुणा और दया से व्याकुल था—दूसरी बात जिसके कारण मैं मांस के भोजन से दूर हुआ, इस तथ्य की जानकारी से कि जहां-जहां भी हम जाते हैं, उस स्थान विशेष के मेजवान विशेष रूप से मेरे दल के सदस्यों के भोजन के लिए ही मुर्गों और भेड़ों का बध करते हैं । निःसन्देह यह मेरे सन्तोष के लिए शुभेच्छा से ही किया जाता था, मगर मै मुर्गा खाना सहन नहीं कर सका, जिसे विशेष रूप से मेरे ही लिए वध किया गया था। इन्हीं सब कारणों ने मुझे सभी प्रकार का मांस निषेधक वनस्पति-खाद्य को अपने भोजन का एकमात्र अथवा मुख्य भाग बनाने का निश्चय करने को निर्देशित किया । मनुष्य बिना मांस के जीवित रह सकता है । मनुष्य बिना मांस के जीवित रह सकता है। विज्ञान और यांत्रिकी के विकास से मनुष्य की सुख-सुविधाओं में अनेक स्तरों पर वृद्धि हुई है। मनुष्य प्रतिभा और विवेकपूर्णता की उस सीमा तक पहुँच गया है कि वह वास्तव में अपनी आवश्यकताओं की तुष्टि के लिए हर वस्तु का उत्पादन करने में सक्षम है। मैं मानवीय भोजन के लिए पशुओं का वध किए जाने का कोई तर्क नहीं देख पाता, इसलिए कि अनेकों प्रकार के विकल्प उपलब्ध हैं। इस पर भी मनुष्य बिना मांस के जीवित रह सकता है । कुछ ही मांसाहारी पशु हैं जो केवल मांस पर ही जीवित रहते हैं। आमोद-प्रमोद और साहस के लिए पशुओं को मारने का विचार ही अरुचिकर और कष्टकर है। इस प्रकार के क्रूर कार्य व्यापारों में लगना न्यायसंगत नहीं होता। यह विवेक और बौद्धिक तरीके से सोचने की क्षमता, जिससे हर व्यक्ति सम्पन्न होता है, की अवमानना है। साधारणतः यह कहा जाता है कि तिब्बत के लोग मांसाहारी होते हैं । वे अपने घोषित धर्मों की ऐच्छिक प्रतिकूलता के बजाय आवश्यकतावश ही हैं । तिब्बत की भौगोलिक जलवायविक परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि बहुत बडे भाग में वनस्पति की फसल विकसित कर पाना संभव ही नहीं होता। वनस्पति का स्पष्ट अभाव ही यहाँ के लोगों को मांस और तत्संबंधी वस्तुओं की अधिकाधिक खपत करने की ओर झुकाता है । तिब्बत के तेज हवाओं वालें विस्तृत उत्तरी पठार में तो वनस्पति एक विरल शिष्टाचार है। फिर भी तिब्बत के लोग वैसाखी पूर्णिमा के पूरे माह और प्रत्येक तिब्बती माह के 5वें, १५वें दिन मांस नहीं छूते हैं। भारतवर्ष की स्थितियां नितान्त भिन्न हैं । वनस्पति फसलों की प्रचुरता के कारण लोगों के लिए मांस-भोजन का निषेध सम्भव होता है। प्रकृति ही प्राणियों की आजीविका का एकमात्र साधन है, मगर उनकी संरक्षक नहीं- इस संदर्भ में कि प्रकृति बाहरी आक्रमण और खतरे से ही उनकी रक्षा कर सकती है । मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी है, क्योंकि वह विवेक और तर्क की क्षमता से सम्पन्न होता है। इसलिए मेरा विश्वास है कि मानवीय प्राणी ही वे प्रतिनिधि हैं जो जिनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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