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________________ शाकाहारी सिद्धान्त के विभिन्न पक्ष - डा० जे० एम० जस्सावाला, बम्बई सामान्य नैतिक कारणों से मांसाहार जीवन के विनाश का सूचक है, जिसमें नैतिकता के विपरीत कोई भी गंभीरतम दुष्कर्म किया जा सकता है । आचारिक पक्ष - पूर्व में शाकाहारी सिद्धान्त आचारिक आधारों पर मान्य हुआ था, शाकाहारी सिद्धान्त आचारिक दृष्टि के अतिरिक्त भी कुछ है, यह एक जैवी विधि है । यह महत्वपूर्ण सत्यों में से धर्म की तरह ही हो जाती है । सम्पूर्ण जीवन का एक ही उद्गम है । यह विधि इस मान्यता की स्वीकृति है । मांस ऐसा उत्तेजक है जो धूम्र और मद्यपान की ललक पैदा करता है और इससे जीवन नष्ट होता है । सामान्य नैतिक कारणों से भी मांसाहार जीवन के विनाश का सूचक है जिससे नैतिकता के विपरीत कोई भी गम्भीरतम दुष्कर्म कर सकता है जबकि पशु का जीवन भी उसी तरह दिव्य है जैसे सम्पूर्ण जीवन दिव्य है । Jain Education International मांस देखने और सूंघने में भी अप्रिय है । यदि एक ओर हमारे सामने फलों और सब्जियों का कटोरा हो और दूसरी ओर कच्चे मांस के टुकड़े हों तो हमारे देखने का भाव, स्पर्श करने का भाव, सूंघने का भाव अविलम्ब पहले का ही चयन करेगा, क्योंकि सौन्दर्यपरक दृष्टि से यही सर्वाधिक सन्तोषप्रद होता है । मृत और छिन्न मांस के आहार पर रहने का विचार सौन्दर्य की रुचि पर आघात करता है। मांस और अण्डे रसोईघर में ले जाये जाने से पूर्व कई दिनों यहां तक कि महीनों रेफ्रिजेटर में रखे जाते हैं, हरे और नीले दिखने वालों की सन्देहात्मक गन्धों के कारण जिनकी रसायनों और द्रव्यों से चिकित्सा कर ली जाती है। यहां तक कि अप्राकृतिक विधि से चर्बी बनाने की विधि जिससे वजन और लाभप्रद बाजार कीमत बढ़ाने में जानवरों का उपयोग किया जाता है, इससे उनके कतल के बाद मांस के उत्पादनों पर भी घातक प्रभाव होते हैं । यह तो अच्छी तरह से ज्ञातव्य तथ्य है कि सर्वाधिक उदाहरणों में मनुष्य प्राणी पर मांस का आधिक्य व्यवस्थित विष और प्रारम्भिक बीमारियों का पर्याववाची ही है । बिना किसी प्रश्न के लाभप्रद होते हुए भी इस अप्राकृत और क्यों करें ? मनुष्य के लिए भोजन में बदल जाने से हम तुच्छ व्यवहार आरोपित करें ही क्यों ? हत्या और मांसाहार की विधि महज गंवारपन है । अमानवीय कार्य से हम श्रेष्ठ परिणामों की प्रत्याशा कुछ ही पूर्व सूअरों मुर्गियों और दूसरे प्राणियों पर मानववादी पक्ष-तालस्ताय ने बड़ी सादगी से कहा है, 'शाकाहारी पय्य मानवतावाद का तीखा परीक्षण है' । यह सभी शाकाहारियों पर लागू नहीं होता, क्योंकि पिछली कई शताब्दियों में शाकाहारी सिद्धान्त भारत में नैतिक, धार्मिक अथवा मानवतावादी उपासना की अपेक्षा परम्परागत रीति और आदत हो गई है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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