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________________ शक्तियों के संरक्षण में भले ही समर्थ हो जाये, किन्तु मांसाहार उसके शरीर, मन और आत्मा के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद ही सिद्ध होता है। डॉ० अलेक्जेंडर हेग के अनुसार जबकि भेड़िया, चीता, सिंह आदि मांसाहारी पशुओं का पाचनतंत्र मांसाहार को पचाकर विषाक्त द्रव्यों को शरीर से निष्कासित करने की क्षमता रखता है, मनुष्य का पाचनतंत्र वैसा नहीं करसकता, न वह उस प्रकार मांस भोजन को उपयुक्त रस-रक्त आदि सप्त-धातुओं में भली प्रकार परिवर्तित कर सकता है। इसके अतिरिक्त मांसाहार के फलस्वरूप मनुष्य अनेक आसाध्य रोगों का शिकार हो जाता है। प्रथम तो भोज्य मांस प्राप्ति के निमित्य बूचड़खानों में जिन पशुओं का. वध किया जाता है, उनमें आधे से अधिक यक्ष्मा आदि अनेक रोगों से ग्रस्त होते हैं और उक्त मांस में उन रोगों के जीवाणु रहते हैं, जो मनुष्य शरीर को भी उनसे ग्रस्त कर देते हैं। यह एक तथ्य है कि बूचड़खानों में यदि ऐसे रोगी पशुओं के 'वध पर रोक लगा दी जाय तो अधिकांश बूचड़खाने बन्द ही करने पड़ जायें। कसाईयों की दुकान पर रखा हुआ मांस भी बहुधा दूषित और विकृत हो जाता है, और यह बात उसे देखकर जानी नहीं जा सकती। अनेक चिकित्सा-शास्त्रियों के मतानुसार गठिया, कैन्सर, पक्षावात, राजयक्ष्मा, मृगी, रक्ताम्ल, कुष्ठ, इनफ्लुएंजा आदि कितने ही भयंकर रोगों का कारण मांसाहार है-कम से कम शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारियों को वे शीघ्र ही पकड़ते हैं और अधिक सताते हैं। प्रत्यूत इसके, फलशाक आदि वनस्पत्याहार से ये रोग शीघ्र ही दूर हो सकते हैं। बहधा यह कहा जाता है कि शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारियों में शारीरिक बल और साहस अधिक होता है, किंतु जैसा कि प्रो० लारेन्स का कहना है, शाकाहार साथ शारीरिक दौर्बल्य एवं कायरता का उतना ही कम सम्बन्ध है, जितना कि मांसाहार के साथ शारीरिक के बल और साहस का । वस्तुत: शाकाहारी की अपेक्षा मांसाहारी में सहन शक्ति, शौर्य और साहस कहीं अधिक कम होता है। पशु जगत में हाथी, दरियाई घोड़ा, घोड़ा, ऊँट, गेंडा, वृषभ, महिष आदि शक्तिशाली एवं दीर्घजीवी पशु शुद्ध शाकाहारी ही होते हैं । आर्थिक दृष्टि से मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार अधिक सहज सुलभ, सस्ता एवं प्रचुर होता है, और वह रचनात्मक उत्पादन का परिणाम होता है। मनुष्य जाति का अधिकांश भाग कृषि उद्योग में ही लगा है। प्रत्येक वर्ष विभिन्न ऋतुओं में माँ धरती विविध अन्न, फल, शाक, सब्जी आदि इतनी प्रचुर मात्रा में प्रदान करती है. और कहीं अधिक उत्पन्न करने की क्षमता रखती है कि मनुष्य की आवश्यकताओं की निर्बाध पूति हो सकती है। इसके अतिरिक्त दुधारू पशुओं के संरक्षण से इतना अधिक दुग्ध एवं दुग्ध से बने दही, छाछ, नवनीत, पनीर, खोआ, घत आदि पदार्थ उपलब्ध होते हैं या हो सकते हैं कि शुद्ध शाकाहार या फलाहार: में जिन प्रोटीन, वसा आदि अन्य पोषक तत्त्वों की कमी रहती है उनकी भी सहज पूर्ति हो जाये। सामाजिक दृष्टि से देखें तो युद्ध, कलह, रक्तपात एवं भीषण अपराध शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारियों में अधिक पाये जाते हैं । मांसाहारी व्यक्ति शीघ्र ही उत्तेजित हो जाता है। जबकि शाकाहारी औसतन शान्तिप्रिय होता है। मांसाहार के साथ मद्यपान प्राय: अविनाभावी रूप से पाया जाता है, और मद्यमांस के सेवन करनेवालों का विषय सेवन एवं ऐयाशी की ओर अधिक झुकाव देखा जाता है। फलस्वरूप अनेक लैंगिक या यौन अपराधों एवं रोगों की वृद्धि होती है । बहुधा मांसाहार के लिए ही निरीह पशुओं का शिकार किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अदया एवं क्रूरता की प्रवृत्ति को तो प्रोत्साहन मिलता ही है, अनेक पशु-पक्षी जातियां सर्वथा समाप्त होती जा रही हैं। अतएव सामाजिक सुख-शान्ति एवं व्यवस्था की दष्टि से भी मांसाहार वर्जनीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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