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________________ श्री महावीर निर्वाण समिति के स्वान्त में जो भगवान महावीर स्मृति ग्रन्थ की उत्कण्ठा अंकुरित हुई है, वह अभिनन्दनीय है। भगवान श्री महावीर स्वामी की महत्ता को पुनः पुनः उपयोगी सिद्ध करने के लिए वर्तमान में जो यह आयोजन आयोजित किया है वह आयोजन विश्व के प्रत्येक जन मानस को स्पर्श करता हुआ सम्बोधदायी बने, यही शुभेच्छा रखता हुआ मैं पुनः पुनः आपके प्रयासों का आदर करता हूँ और विश्व के दिग्-दिगन्त में अपरिग्रह, अनेकान्त और अहिंसा का आलोक उज्ज्वल होता रहे, ऐसी मेरी हार्दिक आकांक्षा है। - आचार्य विजय समुद्र सूरि भगवान महावीर का धर्म अहिंसा, संयम और तप-रूप है। उन्होंने धर्म को उत्कृष्ट मंगल की मान्यता दी। उनकी मान्यता किसी परम्परा के आधार पर नहीं, अपनी अनुभूति के आधार पर स्थापित है। जो व्यक्ति इस मंगल को स्वीकृत कर लेता है, उसके लिए दूसरे सब मंगलाचरण गौण हो जाते हैं। इस मंगल की सर्वोत्कृष्ट उपासना के बाद व्यक्ति के जीवन में किसी अमंगल की सम्भावना ही नहीं रह पाती । लुधियाना २२-९-७५ यह धर्म मंगल जब तक पुस्तकों में लिखित है, मंजूषाओं में निहित है और वाणी में समुच्चारित है, तब तक द्रव्य मंगल है । द्रव्य मंगल, मंगल होने पर भी भाव मंगल, वास्तविक मंगल की तुलना में नहीं आ सकता। इसीलिए भगवान महावीर ने उपासना और क्रियाकाण्डों को अधिक महत्व न देकर आचरण पर विशेष बल दिया। भगवान महावीर द्वारा निर्दाशत धर्म का आचरण ही उनकी पूजा, उपासना और स्तवना है। उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि समर्पित कर सकते हैं । - आचार्य तुलसी ग्रीन हाउस, सी-स्कीम, जयपुर (राजस्थान ) - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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