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________________ - भगवान महावीर की मांगलिक विरासत - -पं० सुखलालजी भगवान महावीर ने जो मांगलिक विरासत हमें सौंपी है, वह क्या है, यही हमारे लिये विचारणीय है । सिद्धार्थनन्दन या त्रिशलापुत्र स्थूल देहधारी महावीर के विषय में हमें यहाँ विचार नहीं करना है । उनका ऐतिहासिक या ग्रन्थबद्ध स्थूल जीवन तो हमेशा हम पढ़ते सुनते आये हैं । जिस महावीर का निर्देश मैं करता हूं वह शुद्ध बुद्ध वासना मुक्त चेतनस्वरूप महावीर का है । ऐसे महावीर में सिद्धार्थनंदन का तो समावेश हो ही जाता है । साथ ही सभी शुद्ध -बुद्ध चेतन का भी समावेश हो जाता है। इस महावीर में किसी जाति पांति का या देशकाल का भेद नहीं है । वे वीतरागाद्वैत रूप से एक ही हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर अनेक स्तुतिकारों ने स्तुति की है । जब आचार्य मानतुंग स्तुत्य तत्व को बुद्ध, शंकर, विधाता और पुरुषोत्तम कहते हैं, तब वे सद्गुणाद्वैत की भूमिका का ही स्पर्श करते हैं। आनन्दघन राम, रहिमान, कान्ह आदि सम्प्रदायों में प्रचलित शब्दों में ऐसे ही किसी परमतत्व का स्त्तवन करते हैं। भगवान महावीर ने जो विरासत हमें दी है, उसे उन्होंने अपने विचार में ही संगृहीत नहीं रखा, किंतु उन्होंने उसे अपने जीवन में उतार कर परिपक्व रूप में ही हमारे समक्ष रखा है। अतएव वह विरासत उपदेश में नहीं समा जाती, उसका तो आचरण भी अपेक्षित है। भगवान महावीर की विरासत को संक्षेप में चार भागों में बांट सकते हैं :१, जीवन दृष्टि. २. जीवन शुद्धि, ३. जीवन व्यवहार का परिवर्तन और ४. पुरुषार्थ । भगवान की जीवन-विषयक दृष्टि को सर्वप्रथम समझने का यत्न कर । जीवनदृष्टि अर्थात जीवन का मूल्य परखने की दृष्टि । हम सभी अपने-अपने जीवन का मूल्य आंकते हैं । जिस कुटुम्ब, जिस ग्राम, जिस समाज या जिस राष्ट्र के साथ हमारा सम्बद्ध होता है उसके जीवन का मूल्य करते हैं । इससे आगे बढ़कर सम्पूर्ण मानवसमाज और उससे भी आगे अपने से सम्बन्ध पशु पक्षी के भी जीवन का मूल्य आंकते हैं । किंतु महावीर की स्वसंवेदन दृष्टि उससे भी आगे बढ़ गई थी। काका कालेलकर ने भगवान महावीर की जीवनदृष्टि के विषय में कहा है कि वे एक ऐसे धैर्य सम्पन्न और सूक्ष्म-प्रज्ञ थे कि उन्होंने कीट पतंग तो क्या जल और वनस्पति जैसी जीवन शून्य मानी जाने वाली भौतिक वस्तुओं में भी जीवन तत्व देखा था। महावीर ने जब अपनी दृष्टि लोगों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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