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________________ यह सत्य है कि १२ वीं शती के प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचन्द्रसूरि ने एक स्थान पर यह कथन किया है कि चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण म०नि० सं० १५५ में हुआ था। उनके कथन से अनेक आधुनिक विद्वानं भ्रान्ति में पड़ गये । परन्तु यह ध्यातव्य है कि हेमचन्द्राचार्य का वह एकाकी कथन उनके पूर्ववर्ती एवं परवर्ती, दिगम्बर एवं श्वेताम्बर, समस्त जैन साधन स्रोतों के विरुद्ध जाता है । वे सब एक मत से नंदवंश का राज्यारंभ म० नि० सं० ६० में हुआ प्रतिपादित करते हैं, और नन्दों का पूरा राज्यकाल १५५ वर्ष रहा सूचित करते हैंकेवल एक ग्रन्थ (खित्थोगाली पयन्ना) में यह काल १५० बर्ष बताया गया है। स्वयं हेमचन्द्र भी अन्यत्र नंदवंश स्थापना की परम्परानुमोदिल तिथि, म०नि० सं० ६० ही प्रतिपादित करते हैं ।57 साथ ही जब वह अपने शिष्य गुजरात के चौलुक्य सम्राट कुमारपाल के सिंहासनारोहण की तिथि महावीर नि० सं० १६६९ सूचित करते हैं,58 तो प्रकारान्तर से महावीर निर्वाण के ईसापूर्व ५२७ में हुए होने का ही स्पष्ट समर्थन करते हैं, क्योंकि कुमारपाल का राज्यारंभ ११४२ ई० में हुआ था। उनके परवर्ती विद्वान मेरुतुंग (१३०६ ई.) ने इस विसंगति को लक्ष्य किया था, किन्तु हेमाचार्य जैसे प्रमाणीक विद्वान के मत का खुला खंडन करने का शायद उन्हें साहस नहीं हुआ । तथापि उन्होंने यह तो लिख ही दिया कि हेमचन्द्राचार्य ने क्यों और कैसे ऐसा विचित्र कथन कर दिया यह विचारणीय है (सञ्चिन्त्यम्)9, साथ ही मेक्तुंग ने स्ववं परम्परानुमोदित कालगणना ही दी। आधुनिक इतिहासज्ञों द्वारा सुनिर्धारित मौर्य कालगणना पर भी महावीर निर्वाण की तिथि ईसापूर्व ५२७ मानने से कोई अन्तर नहीं पड़ता । जैन राज्यकाल-गणना में मौर्यों के राज्यारंभ की तिथि म० नि० सं० २१० या २१५ (अर्थात् ई० यू० ३१७ या ३१२) का अभिप्राय उस वर्ष से है जब चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में उसका आधिपत्य उज्जयिनी पर स्थापित हुआ था, क्योंकि उक्त कालगणनाएं उज्जयिनी को केन्द्र मानकर ही की गयी हैं 160 मगध में अन्तिम नन्दनरेश से राज्य-सत्ता छीनने के पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य को अवश्य ही कुछ वर्ष वहां अपनी स्थिति सुदृढ़ एवं निष्कंटक करने में लगे थे । तदुपरान्त ही उसने विजय अभियान चलाया और उज्जयिनी पर अधिकार स्थापित करके ही वह वस्तुत: भारत सम्राट बन पाया था। 57. अनन्तरं बर्धमान स्वामी निर्वाण वासरात । . गतायां षष्टिवत्सर्यामेष नन्दोऽभन्नृपः ।। परिशिष्ट पर्व, VI, २४३ 58. त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित, पर्व १०, पृ० १२, श्लोक ४५-४६ 59. मेरुतुंग कृत 'प्रबन्ध चिन्तामणि' के अन्तर्गत विचारश्रेणी' 60. 'ग्रीक्स इन बैक्ट्रिया एण्ड इंडिया' ग्रन्थ के लेखक प्रोफेसर टार्न ने अपनी पुस्तक (पृ० ४४-५०) में लिखा है कि ईसा पूर्व १०० के लगभग हुए एक प्राचीन:युनानी इतिहासकार (जिसे टार्न ने ट्रोगससोर्स के रूप में उल्लिखित किया है) ने चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्या रोहण की तिथि ई० पू० ३१२ ही दी है । उनका विश्वास है कि इस महत्वपूर्ण प्राचीन युनानी इतिहाकार ने यह तथ्य अपने भारत प्रवास में स्वयं जैनों से जानकर 'ही लिखा होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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