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________________ ख-३ अभिलेख में प्राप्त होता है। 51 राजस्थान में अजमेर के निकट स्थित प्राचीन काल का यह महत्वपूर्ण स्थान माध्यमिका या माध्यमिका नगरी के नाम से प्रसिद्ध था। अशोक मौर्य के शासन के प्रारंमिक वर्षों के एक अभिलेख में एक स्थान पर २५६ संख्या प्राप्त होती है,52 जो किसी संवत् के वर्ष का सूचक प्रतीत होती है । कतिपय विद्वान उसे बुद्ध संवत् रहा अनुमान करते भी हैं । अधिक संभावना यही है कि वह महावीर निर्वाण संवत् के वर्ष थे, विशेष कर इस कारण कि अपने प्रारंभिक जीवन में बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के पूर्व-अशोक का झुकाव जनधर्म की ओर रहा प्रतीत होता है।3 । इस प्रकार महावीर संवत् २५६ का अर्थ है ईसापूर्व २७१ के लगभग, जिसके दो-तीन वर्ष पूर्व ही अशोक का विधिवत राज्याभिषेक हुआ माना जाता है। इसके अतिरिक्त, कलिंग चक्रवर्ती महमेघगहन खारवेल, जो सुनिश्चित रूप से जैनधर्मावलम्बी था. अपने सुप्रसिदध हाथीगंफा शिलालेख (लगभग ईसा पूर्व १५०) में कथन करता है कि अपने राज्य के पांचवे वर्ष में वह उस प्रणालिका (नहर) को अपनी राजधानी तक ले आया था, जिसे वर्ष १०३ में भूलत: एक नन्दराजा ने निर्माण कराया था।54 यह वर्ष १०३ भी महावीर निर्वाण वर्ष ही रहा प्रतीत होता है, जिसके अनुसार उक्त घटना, अतः उक्त नन्दराजा की तिथि ईसा पूर्व ४२४ आती है। राज्यकालगणना सम्बन्धी जैन अनुश्र तियों में नन्दों का शासनारंभ महावीर नि० सं० ६० (ईसापूर्व ४६७) में और उनका अन्त म० नि० स० २१० या २१५ (ई० पू० ३१७ या ३१२) में हुआ बताया गया है । 55 अतएव लगभग डेढ़ सौ वर्ष पर्यन्त चलने वाले नन्दवंश के राजाओं में से ही कोई एक उपरोक्त नदराजा था । वस्तुत: पौराणिक अनुश्र तियों, ज्योतिष गणना तथा कल्कि अथवा सप्तर्षि संवत्सरों के आधार पर कतिपय विद्वानों ने नंदवंश के सर्वप्रसिद्ध नृप का राज्यारोहण ईसापूर्व ४२४ में ही निश्चित किया है ।56 51. 'वीराय भगवते चतुरासीतिवसे (८४) का जालामालिनिये रनिविठ माझिमिके'-प्राचीन मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि का यह लघु शिलालेख सन् १९१२ में स्व० ५० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा को बड़ली ग्राम से प्राप्त हुआ था और उन्होंने उसकी उपरोक्त व्याख्या की थी। यह अभिलेख डी०सी० सरकार के 'सेलेक्ट इन्सक्रिप्शन्स' में भी प्रकाशित हुआ है। 52. अशोक के लघुशिलालेख नं० १ की पंक्ति ५ में देखिए, जे. फ्लीट, जर्नल रायल एशियाटिक सोसायटी, १९१०, पृ० १३०१-८; १९११, पृ० १०९१-१११२ 53. एडवर्ड टामस, 'जैनिज्म, और दी अर्ली फेथ आफ अशोक,' जर्नल रायल एशियाटिक सी० भाग पृ० १५५ आदि 54. पंचमे च दानीवसे नदराजा तिवससत ओ (घा) टितं' आदि हाथीगुंफा शि० ले०, पंक्ति ६-जर्नल बी०ओ० आर० एस, जिल्द ३, भाग ४, पृष्ट ४५५ 55. ज्यो० प्र० जैन, वही, पृ० २५५-२५९ 56. देखिए, एच०के० देब, 'डेट आफ कारोनेशन आफ महापदम नंद,' अ०भा० प्राच्य विद्या सम्मेलन (पना १९१९) में पठित निबन्धों का संक्षेप सार, पृ० १२०-१२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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