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________________ ४८ ] खण्ड-३ (३) इसी प्रकार पंन्यास मुनि कल्याणविजयजी ने महावीर निर्वाण को तिथि ईसापूर्व ५२८ निश्चित की है और उनकी मान्यता है कि बुद्ध का निर्वाण उसके पूर्व ही, ई० पू० ५४२ में हो चुका था 126 वस्तुतः दो चार अपवादों को छोड़कर प्रायः सभी जैन विद्वान27 और जैनेतर विद्वानों में से अनेक महावीर निर्वाण ई० पू० ५२७ में ही हआ मानते हैं। ऊपर तीनों वर्गों के अन्तर्गत जिन विभिन्न मतों का उल्लेख किया गया है, और जिनमें परस्पर बहुधा पर्याप्त अन्तर हैं, उनमें प्रकृत विषय से सम्बन्धित प्रायः सब ही उल्लेखनीय मत समाहित हो जाते हैं। यह भी स्पष्ट है कि अधिकांशतः ये सब ही मत किन्हीं पूर्व निर्धारित धारणाओं, अयुक्तिक मान्यताओं, विश्वासों या अनुमानों का आधार लेकर चले हैं और अन्त:साक्ष्यों की अपेक्षा बाह्य साक्ष्यों पर मुख्यतया निर्भर करते हैं । अब यदि महावीर के समय का निर्णय करने का प्रयत्न मुख्यतया बुद्ध की तिथि के आधार पर किया जाता है, जो स्वयं अभी भी पर्याप्त विवादग्रस्त है, अथवा यूनानी (सेन्ड्रोकोटस-चन्द्रगुप्त-सिकन्दर) समीकरण के आधार से किया जाता है. जबकि उक्त समीकरण भी पर्णतया असंदिग्ध रूप से सिद्ध नहीं है. तो प्रस्तत समस्या के साथ समुचित न्याय नहीं किया जा सकता, विशेषकर ऐसी स्थिति में जबकि महावीर अथवा बुद्ध के निर्वाणकाल और चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक के मध्य रहे अन्तराल के विषय में जैनों, बौद्धों और ब्राह्मणों की विभिन्न अनुश्रुतियाँ एकमत नहीं हैं। अतएव आवश्यकता इस बात की है कि महावीर का समय अपेक्षाकृत अधिक ठोस एवं अपरिवर्तनीय तथ्यों के आधार पर स्वतंत्र रूप से निश्चित किया जाय, और तदुपरान्त हो अन्य अनुश्रुतियों एवं इतिहाससिद्ध तथ्यों के साथ उसका यथासम्भव समन्वय करने का प्रयत्न किया जाय । भारतीय इतिहास के प्राचीन युग में जो अनेक संवत् समय-समय पर प्रचलित हुए, उनमें से विक्रम और शक नाम के दो संवत ही सर्वाधिक लोकप्रिय एवं व्यापक प्रचारप्राप्त रहे हैं और आज भी प्रचलित हैं। इस विषय में अनेक मतभेद रहें हैं कि उनकी प्रवृत्ति कैसे हुई अथवा उनके प्रवर्तन का श्रेय किसे है, किन्तु यह सर्वमान्य तथ्य है कि विक्रमसंवत् का प्रारम्भ ईसापूर्व ५७ में और शक (या शक-शालिवाहन) संवत का ७८ ई० में हुआ था, और उन दोनों के मध्य १३५ वर्ष का अन्तराल है। साहित्य एवं शिलालेखों में इन दोनों संवतों के प्रयोग की खोज यदि वर्तमान से लेकर पीछे की ओर करते चलें तो उनके प्रवर्तन की प्रायः प्रारम्भिक शताब्दियों तक उनके उपरोक्त पारस्परिक सम्बन्ध तथा अन्य ज्ञात कालगणनाओं के साथ भी उनके संबन्धों की एकरूपता सहज ही सिद्ध की जा सकती है । 26–वीर निर्वाण सम्वत् और जैन काल गणना-ना० प्र० पत्रिका, भा० १०, सं० १९८६, पृष्ठ ५८५७४५ 27-स्व. बा. कामताप्रसाद जैन ने अपनी पुस्तक 'भगवान महावीर (दिल्ली, ५९५१) में तथा मुनि विद्यानन्र । जी (तीथंकर वर्धमान, इन्दौर १९७३, पृ०७४-७८) और डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ('भगवान महावीर औद उनकी आचार्य परम्परा,' वाराणसी, १९७५) ने भी इस प्रश्न पर किंचित ऊहापोह किया है। डा० मुनि नगराज जी ने तो 'आगम और त्रिपिटक: एक अनशीलन' तथा 'महावीर और बुद्ध की समसामयिकता' (दिल्ली, १९७१) में पर्याप्त विस्तार के साथ इस सम्बन्ध में विचार किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि 'महावीर निर्वाण का असंदिग्ध समय ई०पू० ५२७ है तथा महावीर बुद्ध से वयोवृद्ध और पूर्व निर्वाण प्राप्त थे ।' यही निष्कर्ष हम बहुत पहले निकाल चुके थे, किन्तु लगता है, कि मुनि जी हमारी पुस्तक नहीं देख पाये। डा. राधाकुमुद मुकर्जी (हिस्ट्री एण्ड कल्चर आफ इण्डियन पीपल, भा॰ २, पृ० ३६-३८) भी परम्परा तिथि ५२८ ई०प० को स्वीकार करने में कोई विसंगति नहीं देखते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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