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________________ चिन्तन के झरोखे से Jain Education International महावीर २५००० परस्परोपग्रहो जीवानाम युग निर्माता का निर्मल मानस सदा ही जनमंगल की ओर गतिशील रहता है । वह उचित परम्परा को ग्रहण करने, अनुचित को तोड़ने और अनेक आवश्यक नई परम्पराओं को जन्म देने की विविध शक्तियां रखता है । लोकमंगल की दिव्य दष्टि एवं सृष्टि के निर्माताओं के इतिहास पर ज्यों ही एक विहंगम दृष्टि डालते हैं तो हम अनायास ही भगवान महावीर के युग परिवर्तनकारी दिव्य रूप का दर्शन करते हैं। धर्म, समाज और राजनीति, तीनों ही क्षेत्रों में, भगवान महावीर हमें क्रान्ति साधना से संबलित दृष्टिगोचर होते हैं। ईसापूर्व छठी शती सम्पूर्ण विश्व के लिये धार्मिक क्रान्ति काल मानी जाती है। हमारा भारत तो उस समय अत्यन्त ही व्याकुलता के दौर से गुजर रहा था। धर्म के क्षेत्र में वहां केवल रूड़ियां मात्र शेष रह गयीं थीं। धर्म का तेजस्वी रूप रूढ़ियों के अन्धकार में विलीन हो चुका था । ' वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः पुरस्तात्' का ज्योति उद्घोष करने वाला राष्ट्र उस समय स्वयं अन्धकार में भटक रहा था; यज्ञ-यागादि के रूप में मूक पशुओं का बलिदान देकर अपने लिये वह देवताओं की अनुकम्पा प्राप्त करने की विडम्बना अपना रहा था । धर्म के नाम पर यत्र-तत्र उत्पीड़न प्रधान क्रियाकांडों की जय जयकार बुलाई जा रही थी। पंच पंचनखा भक्ष्या: ' की ओट में अखाद्य वस्तु भी उसके लिये खाद्य वस्तु बन गई थी। मनुष्य एक प्रकार से मानवी वृत्ति से राक्षसी वृत्ति पर उतर आया था, और वह भी देवी वृत्ति की पवित्रता के नाम पर मनुष्य की आंखों से दूर हो चुकी थी। कहना तो यह चाहिये कि धर्म का कोई अंग ऐसा नहीं बच रहा था, जिसमें सत्पथनिर्देश की क्षमता शेष रही हो। ऐसे कठिन समय में भगवान महावीर को हम सत्य धर्म का निरूपण करते हुए देख कर निश्चय ही विस्मय विभोर हो उठते हैं। अर्थहीन कर्मकांड के स्थान में अध्यात्मभाव की नई दृष्टि प्रदान कर वे धर्म को अमंगल भूमि से मंगलभूमि में स्थापित कर देते हैं। शुभ और अशुभ की सत्यलक्षी यवार्थ व्याख्या कर वे मनुष्यमात्र की आंखें खोल देते हैं, इसमें तनिक भी संदेह की गुंजाइश नहीं सभी प्राणियों में परमात्मतस्व की भावना अपनाकर मनुष्य वास्तव में मनुष्य कहलाने का अधिकारी हो गया । मानवता की दिव्य प्रभा से मानव हृदय आलोकित हो उठा । करुणा और दया की ज्योति | For Private & Personal Use Only - उपाध्याय अमर मुनि सामाजिक क्षेत्र में भगवान महावीर की जो देन है, वह तो सर्वथा क्रान्तिकारी देन कही जायगी। समत्व की चर्चा मनुष्य समाज में प्रथम बार उनके द्वारा हुई, व्यवहार में समता का जीवन मनुष्यों को प्रथम बार उनके द्वारा प्राप्त हुआ । उन्होंने शूद्र और नारी समाज के लिये उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर दिया । चिर-पतितों और की आशंका पवित्र वित्रों के लिये नहीं रह गई । नारी को केवल भोग्य या दासी बनाकर नारकीय जीवन बिताने । की आज्ञा देने वालों को अपनी करता पर पश्चाताप होने लगा आज अलभ्य नहीं रह गया, हम उसके पृष्ठों में समाज का जो भगवान महावीर के जन्म से पूर्व का इतिहास हृदय द्रावक रूप पाते हैं, उसके स्मरण मात्रसे www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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