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પ્રશસ્તિ લેખે તથા કાવ્ય મતભેદના વમળમાંથી પાર ઉતારે જહાજ,
___ननसूरि भडारा....(६) મહાવીરની નિર્વાણ શતાબ્દી, વિરોધની ચડી આવી આંધી, નંદનસૂરિના મક્કમ પગલે, સમાજને દોરવણી લાધી; કોલાહલના ઢોલ ફૂટ્યા ને વાગ્યા મધુરા સાજ.
ननसूरि मडा२।१४....(७) જીવન-સંધ્યા આવી રહી, કાળની નોબત વાગી રહી, શત્રુંજયની ભવ્ય પ્રતિષ્ઠા, મનની તો મનમાં જ રહી ! અસ્ત થયે શાસનનો સૂરજ, પડી ગઈ રે સાંજ.
मानसूरि भ७।२।०.....(८)
जैसा मैंने उन्हें देखा...... । लेखक-प. पू. आ. श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज
प्रज्ञावान आचार्यों की वर्तमान पर परा मे परम पूज्य आचार्य देव श्री विजयन'दनसूरीश्वरजी महाराज साहेब का व्यक्तित्त्व अत्यत अनूठा और तेजस्वी रहा है । मैं देखता हूँ तो मुझे एक बात सुनिश्चित मालूम होती है कि, कुछ मेरे पासमे' था और खो गया है कोई सौंपदा, कोई राज, कोई रहस्य, कोई कुजी जो खो गई है !
सदभाग्य से मुझे कई बार उनके निकट संपर्क में आनेका और उनके जीवन की गहराई में जाकर उन्हें देखने का सु-अवसर मिला हैं। वे सदा प्रकाशित रहे, उनके जीवन में कहीं पर मुझे अंधकार नजर नहीं आया। वे स्वय' एक तर्क थे, काव्य थे, जैन इतिहास के एक अध्याय थे और विचारों के मन्थन से प्राप्त नवनीत जैसे थे । उनका जीवन ही मुझे तो लयबद्ध सु-मधुर संगीत सा लगा। ___मैंने उन्हें पूर्ण प्रवृत्ति में देखा, पूर्ण निवृत्ति में भी देखा, श्रम व विश्राम की दोनों स्थिति में देखा, प्रशसकों के मध्य में देखा, उनके विचारों से दूर रहनेवाले लोगों के वर्तुल में देखा । पर'तु कहीं कटुता नहीं, शत्रता नहीं, उनके शब्दों में अह' का दुर्गन्ध नहीं । दिल और दिमाग में पूर्ण संतुलन-सयम, व्यवहार में पूरी कुशलता, उनके तर्क में अपूर्व बौद्धिक प्रतिभा का तथा निर्मल क्षयोपशम का परिचय मिला । वे चाहे किसी भी स्थिति में हों, उन्होंने अपनी मर्यादा का और आचार्य पद के गौरव का कभी उलंघन नहीं किया।
उनका जीवन प्रवात्तिप्रधान था, वे खूब व्यस्त रहा करते थे। मझे आश्चर्य होता है कि फिर भी वे चिंतन व स्वाध्याय के लिये समय निकाल लिया करते थे।
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