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डॉ. अरुणप्रताप सिंह
सव्यदक्खपहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो। सदहे जिणपन्नतं पध्धक्खामि य पावगं ।।
- महाप्रत्याख्यान, गाथा 2, पृ. 164 इस प्रकार इस अधिकार की और भी अनेक गाथाएँ इन श्वेताम्बर प्रकीर्णकों से तलनीय हैं --
मूलाचार की 2/39 महाप्रत्याख्यान की गाथा 3 से मूलाचार की 2/40 महाप्रत्याख्यान की गाथा 4 से मूलाचार की 2/44 महाप्रत्याख्यान की गाथा 5 से मूलाचार की 2/45 महाप्रत्याख्यान की गाथा 10 से मूलाचार की 2/46 महाप्रत्याख्यान की गाथा 11 से मूलाचार की 2/50 महाप्रत्याख्यान की गाथा 12 से मूलाचार की 2/51 महाप्रत्याख्यान की गाथा 18 से मूलाचार की 2/55 महाप्रत्याख्यान की गाथा 8 से मूलाचार की 2/56 महाप्रत्याख्यान की गाथा 22 से
मूलाचार की 2/98 महाप्रत्याख्यान की गाथा 108 से तृतीय अधिकार, जो संक्षेपप्रत्याख्यानसंस्तरस्त्वधिकार के नाम से जाना जाता है, की भी अधिकांश गाथाएँ महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक से ली गई हैं। इसका प्रारम्भिक श्लोक जो कि जिनवन्दना है, महाप्रत्याख्यान से तुलनीय
एस करोमि पणामं जिणवसहस्स वड्ठमाणस्स सेसाणं च जिणाणं सगणगणधराणं च सव्वेसिं सव्वं पाणारंभ पच्चक्खामि अलीयवयणं च सव्वमदत्तादाणं मेहूणपरिग्गहं घेव
- मूलाचार, 3/108-109 एस करेमि पणामं तित्ययराणं अणुत्तरगईणं । सव्वेसिंच जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च।। सव्वं पाणारंभ पच्चक्खामी य अलियवयणं ।। सबमदिन्नादाणं अब्बंभ परिग्गहं घेव।।
- महाप्रत्याख्यान, गाथा सं. क्रमश: 1,33 इसी प्रकार इस अधिकार की कुछ और गाथाएँ अन्य श्वेताम्बर प्रकीर्णकों से तुलनीय हैं --
णित्थ भयं मरणसमं जम्मणसमयं ण विज्जदे दक्खं। जम्मणमरणादंक हिंदि ममत्तिं सरीरादो।।
-मूलाचार, 3/119 नत्थि भयं मरणसम, जम्मणसरिसं न विज्जए दुक्खं । जम्मण मरणायंकं लिंद ममत्तं सरीराओ।।
- संथारग प्रकीर्णक, गाथा, 2448, पृ. 289
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