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________________ मूलाचार में वर्णित आचार-नियम : श्वेताम्बर आगम साहित्य के परिप्रेक्ष्य में बृहत्पत्याख्यानसंस्तरस्त्वाधिकार मूलाचार का द्वितीय अधिकार है। इस अधिकार में मुख्यतः संलेखना सम्बन्धी चर्चा है। इस अधिकार की अधिकांश गाथाएँ आउरपच्चक्खाण (आतुरप्रत्याख्यान) एवं महापच्चक्खाण (महाप्रत्याख्यानयक) नामक श्वेताम्बर प्रकीर्णकों से ली गई है। इन गाथाओं में भाषा एवं भाव दोनों दृष्टियों से अत्यधिक समानता है। इनमें जो शाब्दिक अन्तर परिलक्षित होता है, वह अधिकांश स्प से महाराष्ट्री और शौरसेनी प्राकृत के अन्तर के कारण है। हम यहाँ कुछ उदाहरणों द्वारा इस तथ्य को स्पष्ट करेंगे--- सव्वं पाणारंभ पच्चक्खामि अलीयतयणं च। सबभदत्तादाणं मेहूण परिग्गहं वेव।। -मूलाचार, 2/41 सव्वं पाणारंभ पच्चक्खामी य अलियवराणं ध। सव्वमदिन्नादाणं अब्बभ परिग्गहं वेव।। -महाप्रत्याख्यान, गाथा 33, पृ. 167 (2) खमामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती में सव्वभूदेसु वेरं मज्झंण केणवि।। - मूलाचार, 2143 खामेमि सव्वे जीये, सव्वे जीवा खमंतु में। मित्ती मे सव्वभूएसु, बेरं मज्झं न केणइ।। - आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 8, पृ.160 (3) एओ मे सस्सओ अप्या णाणदंसणलक्षणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा। - मूलाचार, 2148 एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजओ। सेसा मे बाहिगभावा सव्वे संजोगलक्खणा।। - आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 29, पृ. 163 (4) संजोयमूलं जीवेण पत्तं दुक्खपरंपरं। तम्हा संजोयसंबंधं सव्वं तिविहेण वोसरे।। -मूलाचार, 2149 संजोगमूला जीवेण पत्ता दुक्खपरंपरा। तम्हा संजोगसंबंध सव्वं तिविहण बोयिरे।। -आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 30, पृ. 162 इस द्वितीय अधिकार का नमस्कार श्लोक भी महाप्रत्याख्यान से ही लिया गया है। दोनों की समानता दर्शनीय है-- सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहदो णमो सदहे जिणपण्णतं पच्चक्खामि य पावयं - मूलाचार, 2/37 61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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