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________________ नियुक्तिसाहित्य : एक परिचय क्योंकि नियुक्तिकार भद्रबाहु ने अनेक स्थलों पर छेदसूत्रकार श्रुतकेवली भद्रबाहु को नमस्कार किया है। यदि छेदसूत्रकार और नियुक्तिकार एक ही भद्रबाहु होते तो नमस्कार का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि कोई भी समझदार ग्रन्थकार अपने आपको नमस्कार नहीं करता है। इस संशय का एक कारण यह भी है कि भद्रबाहु नाम के एक से अधिक आचार्य हुये हैं। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार चतुर्दशपूर्वधर आचार्यभद्रबाहु नेपाल में योगसाधना के लिये गये थे, जबकि दिगम्बर मान्यता के अनुसार यही भद्रबाहु नेपाल में न जाकर दक्षिण में गये थे। इन दोनों घटनाओं से यह अनुमान हो सकता है कि ये दोनों भद्रबाहु भी भिन्न-भिन्न व्यक्ति थे परन्तु नियुक्तिकार भद्रबाहु इन दोनों से भिन्न तीसरे व्यक्ति थे। ये चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहु न होकर विक्रम की छठीं शताब्दी में विद्यमान एक अन्य ही भद्रबाहु हैं जो प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वाराहमिहिर के भाई माने जाते हैं। नियुक्तियों में इतिहास की दृष्टि से भी अनेक ऐसी बातें आयीं हैं जो श्रुतकेवली भद्रबाहु के बहुत काल बाद घटित हुई। अतः नियुक्तिकार भद्रबाहु द्वितीय हैं जो छेदसूत्रकार श्रुतकेवलीभद्रबाहु से भिन्न हैं। इनका समय विक्रम सं. 562 के लगभग है। ये अष्टांगनिमित्त मंत्रविद्या के पारगामी अर्थात् नैमित्तिक के स्प में भी प्रसिद्ध है, इन्होंने अपने भाई के साथ धार्मिक स्पर्धाभाव रखते हुये "भद्रबाहु संहिता" एवं "उपसर्गहरस्तोत्र" की रचना की। इन दो ग्रन्थों के अतिरिक्त इन्होंने निम्न दस नियुक्तियों की रचना की-- 1. आवश्यकनियुक्ति 4. आचारांगनियुक्ति 7. कल्प( बृहत्कल्प)नियुक्ति 10. ऋषिभाषितनिर्यक्ति 2. दशवैकालिकनियुक्ति 5. सूत्रकृतांगनियुक्ति 8. व्यवहारनियुक्ति 3. उत्तराध्ययननियुक्ति 6. दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति 9. सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति आचार्यभद्रबाहु की इन दस नियुक्तियों का रचनाक्रम वही है जिस क्रम में उन्होंने आवश्यकनियुक्ति में नियुक्तिरचनाप्रतिज्ञा की है। नियुक्तियों में जो नाम, विषय आदि आये हैं, वे भी इस तथ्य को प्रकट करते हैं। इन दस नियुक्तियों में से सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित की नियुक्तियाँ अनुपलब्ध है। ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, पंचकल्पनियुक्ति और निशीथनियुक्ति क्रमशः आवश्यकनियुक्ति, दशवकालिकनियुक्ति, वृहत्कल्पनियुक्ति और आचारांगनियुक्ति की पूरक हैं। संसक्तनियुक्ति क्रमशः आवश्यक, दशवैकालिक, वृहत्कल्प और आचारांगनियुक्ति की पूरक हैं। संसक्तनियुक्ति बाद के किसी आचार्य की रचना है। गोविन्दाचार्य प्रणीत गोविन्दानियुक्ति भी वर्तमान में अनुपलब्ध है। आवश्यकनियुक्ति ___ आचार्यभद्रबाहु प्रणीत दस नियुक्तियों में आवश्यकनियुक्ति की रचना सर्वप्रथम हुई है। यही कारण है कि यह नियुक्ति कथ्य, शैली आदि सभी दृष्टियों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस नियुक्ति में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों की विशद एवं व्यवस्थित व्याख्या की गई है। इसके बाद की नियुक्तियों में उन विषयों की संक्षिप्त चर्चा करते हुये विस्तृत व्याख्या के लिये आवश्यकनियुक्ति की ओर संकेत कर दिया गया है। इस दृष्टि से अन्य नियुक्तियों को समझने के लिये आवश्यकनियुक्ति का ज्ञान आवश्यक है। जैन आगमिक साहित्य में आवश्यकसूत्र का विशेष स्थान है। इसमें छः अध्ययन हैं। प्रथम अध्ययन का नाम सामायिक है। शेष पाँचों अध्ययन के नाम चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान हैं। आवश्यकनियुक्ति इसी सूत्र की आचार्यभद्रबाहुकृत पद्यात्मक प्राकृत व्याख्या है। इसी व्याख्या के प्रथम अंश अर्थात सामायिक अध्ययन से सम्बन्धित निर्यक्ति की विस्तत व्याख्या आचार्यजिनभद्र ने विशेषावश्यकभाष्य नाम से की है। इस भाष्य की भी अनेक व्याख्यायें हुई हैं, जिनमें मलधारी हेमचन्द्रकृत व्याख्या विशेष प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त आवश्यकनियुक्ति पर अनेक टीकाएँ लिखी गई हैं जो प्रकाशित भी हैं। उनमें से मलयगिरिकृतवृत्ति, हरिभद्रकृतवृत्ति, मलधारी हेमचन्द्रकृत प्रदेशव्याख्या तथा 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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