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दीनानाथ शर्मा
इस विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता है कि सभी अध्ययनों में भाषा का स्वरूप एक समान नहीं है फिर भी मध्यवर्ती ध्वनि परिवर्तन की दृष्टि से इसिभासियाइं की भाषा आचारांग की भाषा से पूर्व की मालूम होती है।
इसिभासियाइं की हस्तप्रतें बहुत कम-एक या दो ही मिली हैं, जिस पर से यह संस्करण तैयार किया गया है, जबकि अर्धमागधी आगमों के प्राचीन ग्रन्थों की विभिन्न कालों की अनेक प्रतें मिलती हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जितनी अधिक मात्रा में और विभिन्न कालों में विविध लेहियों के हाथों से प्रतियाँ बनीं उतनी ही मात्रा में मूलभाषा में विकृति आती गयी। इस प्रवृत्ति के कारण इसिभासियाइं की भाषा में ध्वनि परिवर्तन सम्बन्धी प्राचीनता रह गयी जब कि अन्य प्राचीन आगम ग्रन्थों में मूल शब्द महाराष्ट्री प्राकृत के समान बन गये।
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