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________________ अभिनंदन कमलवत, निर्लिप्त, निस्पृह श्री पदमचन्द नाहटा अनेक शहादतों, बलिदानों के बाद सन् १९४७ में भारत को बहुप्रतिक्षित स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई। संविधान निर्मात्री परिषद् का गठन हुआ एवं भारत का नया संविधान बना। संविधान के अनुसार सन् १९५२ में भारत में प्रथम चुनाव हुआ । इस समय चुनाव की जो स्थिति है, उस समय एकदम भिन्न थी। पैसे एवं बाहुबल का चुनाव से दूर तक लेना-देना नहीं था । मद्रास में जिस मद्रासी महानुभाव सम्भवतः कुमारमंगलम् ने लोकसभा की सीट पर विजय प्राप्त की थी। उन्होंने अपना पूरा प्रचार साइकिल पर बैठ कर घर-घर जाकर किया था एवं बिना धन तथा बाहुबल के विरोधियों पर विजय प्राप्त की थी। आजकल संस्थाओं के अध्यक्ष पद के लिये भी जबरदस्त प्रतिस्पर्धा होती है एवं मतदाताओं को लुभाने के अनेक प्रयत्न किये जाते हैं। खरतरगच्छ महासंघ के चुनाव में श्री पदमचन्द नाहटा अध्यक्ष निर्वाचित हुए, यह धनबल एवं बाहुबल पर कर्मठ सेवा भावना, सहिष्णुता, धार्मिक उदारता एवं दूरदर्शिता की विजय है। श्री पदमबाबू एक ऐसे कर्मठ सेवाभावी कार्यकर्ता हैं, कोई भी संस्था जिनको पाकर धन्य हो जाती है। Jain Education International श्री पदमबाबू बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। उनका व्यक्तित्व ऐसे कई तत्वों से मिलकर बना है जो सहज प्राप्य नहीं अपितु दुर्लभ है। श्री पदमबाबू का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जो साहित्य, संस्कृति, पुरातत्त्व एवं शोध के लिए केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों के विद्वानों, मनीषियों, चिन्तकों, पुरातत्वविदों एवं शोधार्थियों में विख्यात, आदरणीय एवं पूज्यनीय रहा है। श्री अगरचन्द नाहटा एवं श्री भँवरलाल नाहटा इन दो नामों का जैन जगत सदैव ऋणी रहेगा। वे न केवल जैन दर्शन, साहित्य, संस्कृति, पुरातत्त्व के मान्य विद्वान थे अपितु अथक अध्यवसायी, कर्मठ एवं सहिष्णु भी थे। श्री पदमबाबू के पिताजी श्री भँवरलाल नाहटा बहुभाषाविद् थे एवं प्राचीन लिपियों के उद्भट ज्ञाता थे। इन लिपियों की जानकारी के लिए बड़े-बड़े पुरातत्त्वविद् एवं भाषाविद् श्री नाहटा से मिलने के लिये लालायित रहते थे । हालांकि श्री पदमबाबू साहित्यकार, भाषाविद् एवं पुरातत्त्ववेत्ता नहीं हैं पर किसी वस्तु की तह में जाने एवं उसका सबकुछ जानने की जो प्रबल भावना उनमें है वह अन्यत्र दुर्लभ है। श्री पदम बाबू चित्रकार एवं कलाकार भी नहीं हैं किन्तु उनकी कला एवं चित्र के प्रति अभिरूचि एवं उसे नये रूप से प्रस्तुत करने की ऐसी प्रतिभा उनमें है जो उन्हें दूसरों से भिन्न रूप में प्रस्तुत करती है। सहज, सौम्य, सरल एवं सादगीपूर्ण व्यवहार से सम्पन्न श्री पदम बाबू सहिष्णुता एवं धैर्य की साकार प्रतिमा दृष्टिगत होते हैं। उपनयन से झाँकते उनकी पारदर्शी आँखों एवं मुस्कान से अठखेलियां करता उनका चेहरा, परिपक्वता की निशानी है। जो भी काम पदम बाबू अपने हाथ में लेते हैं उसे पूरा करके खिचड़ी श्मश्रु और गौरवर्ण सबको सहज ही आकर्षित करता ही दम लेते हैं। धुन एवं संकल्प के ऐसे धनी पदम बाबू जिस किसी संस्था से जुड़ते हैं वे सदा-सदा के लिए उसके हो जाते हैं। अनेक संस्थाएँ विभिन्न रूपों में उन्हें पाकर अपने को धन्य मानती है। प्रदर्शन, पाखण्ड और विज्ञापन में उनका लेशमात्र भी विश्वास नहीं है। करना एवं करते रहना उनका सहज स्वभाव है। विनम्र, मृदु एवं मितभाषी पदमबाबू कहते-बोलते कम पर करते बहुत अधिक हैं। कथनी और करनी की एकरूपता उन्हें जन्मघुटी में प्राप्त विरासत है। श्री क्षेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा के विविध क्रियाकलापों से वे अभिन्न रूप से सम्बद्ध हैं। उनका संस्पर्श पाकर कोई भी चीज कुन्दन बनकर निखर उठती है । वे सबके आदरणीय और सब उनके लिये आदरणीय हैं। छोटे-बड़े सब समान हैं उनकी दृष्टि में। वे सबके हितैषी हैं एवं सब इनके हितैषी हैं, यह मणिकांचन संयोग अत्यन्त दुर्लभ है। चुनौतियों से जुझना और उस पर विजय प्राप्त करना कोई इनसे सीख सकता है । अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ महासंघ का अध्यक्ष पद ऐसे सेवाभावी कर्मठ कार्यकर्त्ता अथक अध्यवसायी एवं संकल्प के धनी व्यक्ति को पाकर गौरवान्वित बनेगा। अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ महासंघ के अध्यक्ष पद पर उनका निर्वाचन सामयिक एवं उनके व्यक्तित्व के अनुरूप है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा, कोलकाता परिवार की ओर से राशि राशि बधाई एवं हार्दिक अभिनन्दन । अष्टदशी / 250 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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