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________________ सेवा, सहयोग एवं उदारता की अपने पैतृक व्यवसाय चाय से जुड़ गये। आप चाय बागानों के श्रद्धांजलि आधुनिकीकरण एवं विकास के लिये सतत प्रयत्नशील रहे। आपके अथक अध्यवसाय, दूरदृष्टि एवं सूझबूझ ने चाय उद्योग में एक क्रान्ति उत्पन्न की एवं विकास की नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। आपके प्रयत्नों से ही देश में विपण्णन के साथ विदेशों में चाय का निर्यात किया जाने लगा। भारतीय चाय ने जो ख्याति अर्जित की है उसका अधिकांश श्रेय श्री श्रीचन्दजी नाहटा एवं इनके परिवार की प्रबन्धपटुता, कार्यदक्षता, सामायिक दूरदृष्टि एवं गहन रुचि को है। श्री श्रीचन्दजी नाहटा का समग्र जीवन मानव सेवा एवं जनोपयोगी कार्यों के लिए समर्पित था। वे अपने निरभिमानी, सहज, सरल एवं सादगीपूर्ण व्यवहार से सबके प्रिय थे। आडम्बर, प्रदर्शन से सर्वथा दूर हँसमुख मिलनसार एवं मृदुभाषी श्री नाहटा स्नेहपूर्ण आत्मीयता से सम्पन्न थे। वे सबके साथ सहज ही घुलमिल जाते थे। वे अनेक शैक्षणिक, धार्मिक, सामाजिक एवं चिकित्सीय सेवा-संस्थानों से अभिन्न रूप से सम्बद्ध थे। अनेक संस्थाओं के प्रतिमूर्ति श्री श्रीचन्द नाहटा वे मानद् पदाधिकारी थे एवं उनकी छत्रछाया में अनेक संस्थान विकासोन्मुख थे जो उनकी कीर्ति के अक्षय भण्डार हैं। प्रत्यक्षसेवा, सहयोग एवं सहकारिता के त्रिवेणी संगम श्री अप्रत्यक्ष रूप से अनेक संस्थाएँ उनके बहुमूल्य सेवाओं से श्रीचन्दजी नाहटा का जन्म ६ नवम्बर १९२८ को कोलकाता लाभान्वित थी। श्री जैन हॉस्पीटल एवं रिसर्च सेन्टर, हावड़ा से में पिताश्री श्री कुन्दनमलजी नाहटा के यहाँ श्रीमती चम्पादेवी । उनके घनिष्ट सम्बन्ध थे। वे विगत कई वर्षों से इसकी प्रबन्ध नाहटा की कुक्षी से हुआ। कुन्दन की शुद्धता एवं चम्पा की समिति के अध्यक्ष थे एवं उनके नेतृत्व में यह हॉस्पीटल प्रगति महक से सुवासित इनके जीवन से न केवल पश्चिम बंगाल अपितु पथ पर आरुढ़ रहा है। वे अत्यन्त उदार थे। धार्मिक बिहार, आसाम, राजस्थान, गुजरात, पंजाब आदि प्रान्तों एवं कठमुल्लापन तो उनको स्पर्श भी नहीं कर पाया था। श्री श्वेताम्बर राज्यों की अनेक धार्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक एवं चिकित्सीय स्थानकवासी जैन सभा, कोलकाता के वे परम हितैषी थे एवं संस्थान पल्लवित, पुष्पित होकर चतुर्दिक यश: सुरभि प्रवाहित । अनेक गतिविधियों एवं क्रियाकलापों से वे सक्रिय रूप से जुड़े कर रहे हैं। उन्होंने अपनी करुणा, उदारता, कर्मठ सेवा भावना थे। उनके सुपुत्र श्री विजय नाहटा भी होनहार बिरवान के होत से काल के ललाट पर जो चिह्न अंकित किए हैं, वे कालजयी चिकने पात' की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। वे बनकर हमारी यादों में अमिट एवं अक्षुण्ण हैं। प्रतिभाशाली, दूरदृष्टि सम्पन्न एवं कुशल व्यक्तित्व के धनी हैं। समाज को उनसे बड़ी आशाएँ हैं। वे अपने पिता के पदचिन्हों आपका विवाह रतनगढ़ निवासी श्री भूरामलजी बैद एवं का अनुसरण कर अपने जीवन को सार्थक बनायेंगे, ऐसा श्रीमती गणपतिदेवी की सुपुत्री रतनदेवी नाहटा के साथ सम्पन्न विश्वास है। श्री श्रीचन्द नाहटा के असामयिक स्वर्गवास से जैन हुआ। श्रीमती रतनदेवी वस्तुत: एक दुर्लभ रत्न थीं और थीं श्री समाज की अपूरणीय क्षति हुई है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन श्रीचन्दजी की प्रेरणा की अक्षय स्रोत। जिनकी कोख से २ पुत्र सभा परिवार की स्वर्गस्थ आत्मा को हार्दिक श्रद्धांजलि एवं श्री महेन्द्र, श्री विजय नाहटा तथा दो पुत्रियाँ श्रीमती सम्पतदेवी पीड़ित परिवार को यह असहनीय दुःख सहन करने की शक्ति दुगड़ एवं श्रीमती प्रेम चोरड़िया हुए। बड़े पुत्र श्री महेन्द्र, बड़े प्रदान करे, यही शासनदेव से प्रार्थना है। भ्राता श्री शुभकरणजी के गोद चले गये जिन्होंने सरदारशहर में दुर्लभ कलाकृतियों के संग्रह हेतु नाहटा म्युजियम की स्थापना की। श्री श्रीचन्दजी नाहटा का बाल्यकाल सरदारशहर में बिता किन्तु कर्मस्थल कोलकाता महानगर था। आप प्रारम्भ से ही ० अष्टदशी / 2490 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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