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कइविहा णं भंते! दव्वा पण्णत्ता?
असंख्यात मनुष्य हैं, असंख्यात वाणव्यन्तर हैं, असंख्यात गोयमा दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा-जीवदव्वा य जीवदव्वा या० । ज्योतिष्क देव हैं, असंख्यात वैमानिक देव हैं, अनन्त सिद्ध हैं। भगवन्! द्रव्य कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
इस प्रकार हे गौतम! जीवपर्याय संख्यात और असंख्यात नहीं, गौतम! दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं- जीव द्रव्य और अजीव
किन्तु अनन्त हैं।१३ द्रव्य।
धर्मास्तिकाय गति परिणाम वाले जीव और पुद्गलों की
गति में सहायक होता है। अधर्मास्तिकाय स्थिति परिणाम वाले व्याख्याप्रज्ञप्ति में अजीव द्रव्यों को पुन: रूपी अजीव द्रव्य
जीव और पुद्गलों की स्थिति में सहकारी होता है। एवं अरूपी अजीव द्रव्य में विभक्त किया जाता है।
आकाशास्तिकाय अन्य सभी द्रव्यों/अस्तिकायों को स्थान/ प्रज्ञापना सूत्र में अरूपी अजीव द्रव्य की १० पर्याय एवं
अवकाश देता है। जीवास्तिकाय चेतनागुण या उपयोगगुण वाला रूपी अजीव द्रव्य की ४ पर्याय निरूपित हैं। अरूपी अजीव द्रव्य
होता है। पुद्गलास्तिकाय वर्ण, गंध रस एवं स्पर्श वाला होता है। की १० पर्याय हैं११-१.धर्मास्तिकाय २. धर्मास्तिकाय के देश
शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान भेद, अंधकार, छाया, ३. धर्मास्तिकाय के प्रदेश, ४. अधर्मास्तिकाय ५.
आतप, उद्योत वाले द्रव्य भी पुदगल होते हैं। काल वर्तना लक्षण अधर्मास्तिकाय के देश ६. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश ७.
वाला है।१४ आकाशास्तिकाय ८. आकाशस्तिकाय के देश ९.
इनमें धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय के प्रदेश और १०. अद्धासमय। अरूपी से
पुद्गलास्तिकाय अजीवकाय हैं तथा धर्मास्तिकाय, तात्पर्य है वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श से रहित। धर्मास्तिकाय,
अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय एवं जीवास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय एवं काल द्रव्य वर्णादि से रहित होने के कारण अरूपी हैं। रूपी द्रव्य एक ही है
__ अरूपीकाय हैं, क्योंकि इनमें वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श नहीं हैं। पुद्गलास्तिकाय। इसके चार पर्याय हैं- स्कन्ध, स्कन्धदेश,
प्रदेश की अपेक्षा धर्म, अधर्म एवं एक जीव द्रव्य में असंख्यात
प्रदेश माने गए हैं तथा आकाश में अनन्त प्रदेश कहे गए हैं। स्कन्ध प्रदेश और परमाणु पुद्गल। पुद्गल का स्वतन्त्र खण्ड
पुद्गल में संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश हैं। पुद्गल स्कन्ध, उसका कल्पित अंश देश एवं उसका परमाणु जितना कल्पित अंश प्रदेश कहा जाता है। परमाणु पुद्गल स्वतंत्र है।
परमाणु एक प्रदेशी होकर भी अनेक स्कन्ध रूप बहु प्रदेशों को देश एवं प्रदेश के धर्मास्तिकाय आदि अरूपी द्रव्यों में भी
ग्रहण करने की योग्यता रखता है। गुरुलघुत्व की अपेक्षा से कल्पित अंश एवं परमाणु जितने कल्पित अंश ही वाच्य हैं।
पुद्गलास्तिकाय गुरुलघु भी है और अगुरुलघु भी, किन्तु
धर्मास्तिकाय आदि शेष चार अगुरुलघु हैं। रूपी अजीव द्रव्य की अनन्त पर्यायों का भी प्रतिपादन हुआ है। गौतम गणधर के प्रश्न के उत्तर में प्रज्ञापना सूत्र में भगवान
षड्द्रव्यों में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और महावीर ने स्पष्ट किया है- गौतम! परमाणु पुद्गल अनन्त हैं,
आकाशास्तिकाय द्रव्य की दृष्टि से तुल्य हैं तथा षड्द्रव्यों में द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त
सबसे अल्प हैं। उनसे जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुणे
हैं, उनसे पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुणे हैं। उनसे हैं, संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, असंख्यात प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं। इस कारण
अद्धासमय द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुणे हैं।१५।। है गौतम! ऐसा कहा जाता है कि रूपी अजीव पर्याय संख्यात संख्या का यह निर्देश इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि और असंख्यात नहीं है, किन्तु अनन्त हैं।१२।
अस्तिकाय एवं द्रव्य में भिन्नता है। धर्मास्तिकाय, जीवद्रव्य की भी अनन्त पर्याय स्वीकृत हैं। इसका कारण
अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय में द्रव्य एवं अस्तिकाय
की दृष्टि से समानता हैं, क्योंकि वे अस्तिकाय की दृष्टि से भी प्रतिपादित करते हुए कहा गया है- असंख्यात नैरयिक हैं,
एक-एक हैं तथा द्रव्य की दृष्टि से भी एक-एक हैं। असंख्यात् असुरकुमार यावत् असंख्यात स्तनित कुमार हैं,
जीवास्तिकाय को द्रष्ट की दृष्टि से धर्मास्तिकाय की अपेक्षा असंख्यात पृथ्वीकायिक हैं, असंख्यात अपकायिक हैं,
अनन्तगुणा कहा गया है। इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक जीव एक असंख्यात् तेजस्कायिक हैं, असंख्यात वायुकायिक हैं, अनन्त वनस्पतिकायिक हैं, असंख्यात द्वीन्द्रिय हैं, असंख्यात त्रीन्द्रिय है,
भिन्न द्रव्य है इसलिए उन्हें अनन्तगुणा कहा गया है। असंख्यात् चतुरिन्द्रिय हैं, असंख्यात् पचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक हैं,
पुद्गलास्तिकाय को तो द्रव्य की दृष्टि से जीव से भी अनन्तुणा
० अष्टदशी / 2280
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