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________________ डॉ० धर्मचन्द जैन, प्रोफेसर अस्तिकाय पाँच हैं२- १. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय संस्कृत-विभाग, जयनारायण व्यास ३. आकाशस्तिकाय ४. जीवास्तिकाय और ५. विश्वविद्यालय, जोधपुर पुद्गलास्तिकाय। द्रव्य को ६ प्रकार का प्रतिपादित करते समय अद्धासमय (काल) को भी पंचास्तिकाय के साथ जोड़कर निरूपित किया जाता है। अस्तिकाय एवं द्रव्य दो भिन्न शब्द हैं, अत: इनके अर्थ में भी कुछ भेद होना चाहिये। अस्तिकाय द्रव्य है, किन्तु मात्र अस्तिकाय नहीं है। 'अस्तिकाय' (अत्थिकाय) शब्द का विवेचन करते हुए आगम टीकाकार अभयदेव सूरि ने कहा है- अस्तीत्ययं त्रिकालवचनो निपातः, अभूवन भवन्ति भविष्यनित चेति भावना। अतोऽस्ति च ते प्रदेशानां कायाश्च राशय इतिअस्तिकाया:। 'अस्ति' शब्द त्रिकाल का वाचक निपात है, अर्थात् 'अस्ति' से भूतकाल, वर्तमान एवं भविष्यत् तीनों में रहने वाले पदार्थों का ग्रहण हो जाता है। 'काय' शब्द राशि या समूह का वाचक है। जो कार्य अर्थात् राशि तीनों कालों में रहे वह अस्तिकाय है। अस्तिकाय की एक अन्य व्युत्पत्ति में अस्ति का अर्थ प्रदेश करते हुए प्रदेशों की राशि या प्रदेश समूह को अस्तिकाय कहा गया है- अस्तिशब्देन प्रदेशप्रदेशाः क्वचिदुच्यन्ते, ततश्च तेषां वा कायाः अस्तिकायाः। इस अस्तिकाय के द्वारा सम्पूर्ण जगत् की व्याख्या हो जाती है। 'अस्तिकाय' को व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के आधार पर स्पष्टरूपेण समझा जा सकता है। वहाँ पर तीर्थंकर महावीर से उनके प्रमुख अस्तिकाय शिष्य गौतम गणधर ने जो संवाद किया, वह इस प्रकार है'अस्तिकाय' जैन दर्शन का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है, प्रश्न - भंते! क्या धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को जो लोक या जगत् के स्वरूप का निर्धारण करता है। अस्तिकाय 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है? का निरूपण एवं विवेचन शौरसेनी, अर्द्धमागधी एवं संस्कृत भाषा . उत्तर - गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् में रचित आगम-ग्रन्थों, सूत्रों, टीकाओं एवं प्रकारण ग्रन्थों में धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को धर्मास्तिकाय नहीं विस्तार से समुपलब्ध है, किन्तु प्रस्तुत लेख में अर्द्धमागधी कहा जा सकता) आगमों में निरूपित पंचास्तिकाय पर विचार करना ही समभिप्रेत प्रश्न भन्ते! क्या धर्मास्तिकाय के दो, तीन, चार, पाँच, है। अर्द्धमागधी भाषा में निबद्ध आगम श्वेताम्बर परम्परा का छह, सात, आठ, नौ, दस, संख्यात और प्रतिनिधित्व करते हैं। दिगम्बर परम्परा इन्हें मान्य नहीं करती। असंख्यात प्रदेशों को ‘धर्मास्तिकाय' कहा जा उनके षट्खण्डागम, कसायपाहुड, समयसार, नियमसार, सकता है? प्रवचनसार, पंचास्तिकायसंग्रह आदि ग्रन्थ शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। अर्द्धमागधी आगमों में मुख्यत: व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, उत्तर - गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्रज्ञापना सूत्र, जीवाजीवाभिगम सूत्र, समवायांग, स्थानांग, प्रश्न - भन्ते! एक प्रदेश न्यून धर्मास्तिकाय को क्या उत्तराध्ययन आदि आगमों में पंचास्तिकाय एवं षड् द्रव्यों का 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है? निरूपण सम्प्राप्त होता है। इसिभासियाई ग्रन्थ भी इस दृष्टि से उत्तर - गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। महत्वपूर्ण है। प्रश्न - भन्ते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है? उत्तर - गौतम! जिस प्रकार चक्र के खण्ड को चक्र नहीं अर्द्धमागधी आगम-साहित्य में अस्तिकाय ● अष्टदशी / 2260 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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