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होता है, जबकि सोऽहम् का अजपाजप बिना किसी प्रयत्न के अनायास हो जाता है। इसीलिए इसे बिना जप किये जप - "अजपाजप" कहा जाता है। इसे योग की भाषा में अनाहत नाद भी कहते हैं। सोऽहम् जप में आत्मबोध एवं तत्वबोध दोनों है।
सोऽहम् जप-साधना में आत्मबोध और तत्वबोध दोनों का सम्मिश्रण है। मैं कौन हूँ, इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है स: = वह परमात्मा अहम् = मैं हूँ। इसे ब्रह्मदर्शन में आत्मदर्शन भी कह सकते हैं, यह आत्मा, परमात्मा की एकता-अद्वैत का ब्रह्मज्ञान है।
इस ब्रह्मज्ञान के उदित हो जाने पर आत्मज्ञान, सम्यग्ज्ञान, तत्वज्ञान, व्यवहार्य-सद्ज्ञान आदि सभी की शाखा-प्रशाखाएँ फूटने लगती हैं। इसलिए “सोऽ "ह" जप को अतीव उच्चकोटि का जपयोग माना गया है। जैनदृष्टि से जाप एक प्रकार का पदस्थ ध्यान का रूप है। जाप के इन सब रूपों के लाभ, महत्व स्वरूप तथा प्रक्रिया एवं विधि-विधान को समझकर जपयोगसाधना करने से व्यक्ति परम लक्ष्य-मोक्ष को प्राप्त कर सकता
० अष्टदशी/ 2170
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