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________________ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० जपयोग की विलक्षण शक्ति जप क्या है? स्थूलदृष्टि से देखने पर यही मालूम होता है कि जप शब्दों का पुनरावर्तन है। किसी भी इष्टदेव, परमात्मा या वीतराग प्रभु के नाम का बार-बार स्मरण करना, या किसी मंत्र या विशिष्ट शब्द का बार-बार उच्चारण करना जप है। इसे जाप भी कहते हैं। पदस्थ ध्यान का यह एक विशिष्ट अंग है। शब्दों के बार-बार उच्चारण से क्या लाभ? प्रश्न होता है- शब्दों का उच्चारण तो संसार का प्रत्येक मानव करता है। पागल या विक्षिप्त है चित्त व्यक्ति भी एक ही बात (वाक्य) को बार-बार दोहराता है अथवा कई राजनीतिज्ञ या राजनेता भी अपने भाषण में कई लोग रात-रात भर हरे राम, हरे कृष्ण आदि की धुन लगाते हैं। अथवा कीर्तन करते-कराते हैं, क्या इनसे कोई लाभ होता है? क्या ये शब्दोच्चारण आध्यात्मिक लक्ष्ण की पूर्ति करते हैं? शब्द शक्ति का प्रभाव इसका समाधान यह है कि वैसे प्रत्येक उच्चारण किया हुआ या मन में सोचा हुआ शब्द चौदह रज्जू प्रमाण (अखिल) लोक (ब्रह्माण्ड) में पहुँच जाता है। जैसे भी अच्छे या बुरे शब्दों का उच्चारण किया जाता है, या सामूहिक रूप से नारे लगाये जाते हैं, या बोले जाते हैं, उनकी लहरें बनती हैं, वे आकाश में । व्याप्त अपने सजातीय विचारयुक्त शब्दों को एकत्रित करके लाती है। उनसे शब्दानुरूप अच्छा या बुरा वातावरण तैयार होता है। अच्छे शब्दों का चुनाव अच्छा प्रभाव पैदा करता है, और बुरे शब्द बुरा प्रभाव डालते हैं। अधिकांश लोग शब्द शक्ति को केवल जानकारी के आदान-प्रदान की वस्तु समझते हैं। वे लोग शब्द की विलक्षण शक्ति से अपरिचित हैं। अच्छे-बुरे शब्दों का अचूक प्रभाव वीतरागी या समतायोगी को छोड़कर शब्द का प्रायः सब लोगों के मन पर शीघ्र असर होता है। अच्छे-बुरे, प्रिय-अप्रिय शब्द के असर से प्रायः सभी लोग परिचित हैं। महाभारत की कथा प्रसिद्ध है। दुर्योधन को द्रौपदी द्वारा कहे गए थोड़े से व्यंग भरे अपमानजनक शब्द "अंधे के पुत्र अंधे ही होते हैं" की प्रतिक्रिया इतनी गहरी हुई कि उसके कारण महाभारत के ऐतिहासिक युद्ध का सूत्रपात हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहिणी सेना मारी गई। स्वामी विवेकानंद के पास कुछ पंडित आए। वे कहने लगेक्या पड़ा है- शब्दों में। जप के शब्दों का कोई प्रभाव या अप्रभाव नहीं होता। वे जड़ हैं। आत्मा पर उनका क्या असर हो सकता है? स्वामीजी कुछ देर तक मौन रहकर बोले- “तुम मूर्ख हो, बैठ जाओ।" इतना सुनते ही सब आगबबूला हो गए और उनके चेहरे क्रोध से लाल हो गए। उन्होंने कहा- “आप इतने बड़े संन्यासी होकर गाली देते हैं। बोलने का बिल्कुल ध्यान नहीं है आपको?'' विवेकानंद ने मुस्कराते हुए कहा- "अभी तो आप कहते थे, शब्दों का क्या प्रभाव होता है? और एक "मूर्ख' शब्द को सुनकर एकदम भड़क गए। हुआ न शब्दों का प्रभाव आप पर?' वे सब पंडित स्वामी विवेकानन्द का लोहा मान गए। जैन इतिहास में प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की घटना प्रसिद्ध है। वे वन में प्रसन्न मुद्रा में पवित्र भावपूर्वक ध्यानस्थ खड़े थे। मगध नरेश श्रेणिक नृप भगवान महावीर के दर्शनार्थ जाने वाले थे। उनसे पहले दो सेवक आगे-आगे जा रहे थे। उनमें से एक ने उनकी प्रशंसा की, जबकि दूसरे ने उनकी निन्दा की और कहा"यह काहे का साधु है? यह जिन सामन्तों के हाथ में अपने छोटे-से बच्चे के लिए राज्यभार सौंप कर आया है, वे उस अबोध बालक को मारकर स्वयं राज्य हथियाने की योजना बना रहे हैं। इस साधु को अपने अबोध बच्चे पर बिल्कुल दया नहीं है।" इस प्रकार के निन्दा भरे शब्द सुनते ही प्रसन्नचन्द्र राजर्षि अपने आप में न रहे। वे मन ही मन शस्त्रास्त्र लेकर शत्रओं से लडने का उपक्रम करने लगे। श्रेणिक राजा द्वारा भगवान महावीर से पूछने पर उन्होंने सारी घटना का रहस्योद्घाटन करते हुए राजर्षि की पहले, दूसरे से बढ़ते-बढ़ते सातवें नरक गमन की अशुभ भावना बताई परन्तु कुछ ही देर बाद राजर्षि की भावधारा एकदम मुड़ी वे पश्चात्ताप ० अष्टदशी / 2110 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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