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________________ बनेचन्द मालू से भले ही सीमित प्रतीत होती हों, परन्तु संगीत की विविध राग- रागिनियों तथा कृष्ण भक्ति के विविध आयामों के स्पर्श के कारण इनकी महिमा असंदिग्ध है, कहने की आवश्यकता नहीं कि अष्टछाप के इन भक्त कवियों की संगीत सरिता में प्रवाहित भाव-धारा ने अपनी स्वतंत्र उद्भावना से जो राह बनाई, वह अप्रतिम है। यह सरिता वस्तुत: भक्ति भागीरथी और काव्यकालिन्दी का ऐसा संगम है जिसमें स्नान कर काव्य रसिकों और भावुक भक्तों को युगों तक आनंद की प्राप्ति होती रहेगी। विशद अर्थ में अष्टछाप की कविता भक्ति काव्य एवं संगीत की पावन त्रिवेणी है। बागुईआटी, कोलकाता आदमी नहीं था किसी बेचारे का एक्सीडेंट हो गया। कार तो भाग गई पर लोगों को भी नहीं आई दया। खून से लथपथ पड़ा था सड़क पर। कोई पास के अस्तपाल नहीं ले जा रहा था। क्योंकि पुलिस का था डर। सवालों का जवाब देना होगा। कैसे हुआ, किसने देखा, कहना होगा। बाद में थाना भी जाना होगा, कोर्ट में देनी होगी गवाही। इस तरह घसीटा जाना पड़ेगा, क्यों लें ऐसी वाहवाही। समय बीत गया, बेचारा ढेर हो गया। किसी नवयुवती का सिंदूर, नन्हें बच्चों की आशा, चिर निद्रा में सो गया। घर में कोहराम मच गया, मातम छा गया। हंसी-खुशी भरे जीवन को काल-चक्र खा गया। आने जाने वाले सान्त्वना दे रहे थे। पूछ-पूछ कर घटना का जायजा ले रहे थे। एक औरत अफसोस जता रही थी, कह रही थी व्यस्त सड़क थी भीड़ तो बहुत थी। फिर पड़ा क्यों रहा, अस्पताल भी पास में वहीं था। मैंने कहा भीड़ तो बहुत थी अस्पताल भी पास में वहीं था, पर भीड़ में कोई आदमी नहीं था। ५-बी, श्री निकेत, ११ अशोका रोड, अलीपुर, कलकत्ता - ७०० ०.२७ ० अष्टदशी / 1970 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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