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________________ 'उचितवक्ता' में छपे मन्तव्य से जानी जा सकती है। ७ अगस्त स्वरूप निर्धारित करने, स्वतंत्रता का स्वर मुखरित करने, जैसे १८८० ई० को 'हितं मनोहारि च दुर्लभ वचः' के साथ महत्वपूर्ण कार्य किए। स्वातन्त्रोत्तर काल (१९४८-१९७४) 'उचितवक्ता' का प्रकाशन हुआ। १२ मई १८८३ के अंक में । के बाद हिन्दी पत्रकारिता नवयुग में प्रवेश कर गई। इसके बाद संपादकों से कहा गया कि “देशीय संपादको। सावधान!! कहीं २१वीं सदी की पत्रकारिता व्यापक और समृद्ध रूप में सामने जेल का नाम सुनकर 'किं कर्तव्यविमूढ़ मत हो जाना, यदि धर्म आई है। आजादी के बाद देश कृषि, औद्योगिक और तकनीकी की रक्षा करते हुए गवर्नमेण्ट को सत्परामर्श देते हुए जेल जाना। विकास, सुरक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हुआ। कृषि पड़े तो क्या चिन्ता है। इसमें मानहानि नहीं होती। हाकिमों के क्रान्ति ने अन्न-वस्त्र की समस्या से निजात दिलाई। पत्रकारिता जिन अन्यायपूर्ण आचरणों से गवर्नमेण्ट पर सर्वसाधारण की हर क्षेत्र में राष्ट्रीय विकास के कर्णधारों के साथ कंधे से कंधा अश्रद्धा हो सकती है, उनका यथार्थ प्रतिवाद करने में जेल तो मिलाकर साथ-साथ रही। अब हिन्दी पत्रकारिता राष्ट्रीय क्या दीपांतरित भी होना पड़े तो क्या बड़ी बात है? क्या इस समस्याओं और जीवन मूल्यों में आई गिरावट से लोहा ले रही सामान्य विभीषिका से हम लोग अपना कर्तव्य छोड़ बैठे?" यह है। देश में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, मूल्यवृद्धि, मुनाफाखोरी, भारतीय पत्रकारिता के प्रारंभिक दौर की निष्ठा को इंगित करती विदेशी घुसपैठ और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के षडयंत्र के खिलाफ है कि उस जमाने की पत्रकारिता आदर्शों और जीवन मूल्यों पर हिन्दी पत्रकारिता सजगता से काम कर रही है। भारत को विश्व आधारिता रही है। हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास विश्व शक्ति के रूप में उभारने तथा राष्ट्रीय समग्रता को विकसित पत्रकारिता में भी स्वाभिमानपरक, आदर्शों और मूल्यों पर करने में हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका बढ़ी है। आज देश में आधारित रहा है, आम लोगों को शिक्षित एवं जागृत करने, अखबारों की आवाज उतनी ही बुलन्द है जितनी संसद में किए राष्ट्रीय स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय निर्माण के हर मोड़ में पत्रकारिता गए निर्णयों का असर होता है। राष्ट्रीय जीवन की पथ प्रदर्शक रही है। उनकी प्रजा की हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में (१८८५-१९१९) परिस्थितियों का सही परिचय देना चाहता हूँ ताकि शासक जनता तक पत्रकारिता चेतना का स्वर्णिम काल रहा। इस काल में हिन्दी को अधिक से अधिक सुविधा देने का अवसर पा सकें और पत्रों ने ऐसा सिंहनाद किया कि राष्टीय भक्तों का ज्वार आ जनता उन उपायों से अवगत हो सकें जिनके द्वारा शासकों से गया। हिन्दोस्थान सर्वहितैषी, हिन्दी बंगवासी, साहित्य सुधानिधि, सुरक्षा पाई जा सके और अपनी उचित मांगे पूरी कराई जा सकें। - स्वराज्य, नृसिंह प्रभा, प्रभृति समाचार पत्रों ने ऐसा जागरण मंत्र कमोवेश पत्रकारिता के इसी आदर्श की आज भी जरुरत है। फूंका कि अंग्रेजी शासकों की चूलें हिल गई। १८८५ में हालांकि वैश्वीकरण और आर्थिक प्रतिस्पर्धा के युग में हिन्दोस्थान का प्रकाशक कालाकाँकर के राजा रामपाल सिंह ने पत्रकारिता पर भी बाजारवाद हावी होने लगा है। किया। पंडित मदन मोहन मालवीय, अमृतलाल चक्रवर्ती, प्रताप पत्रकार और कई समाचार पत्र सत्ता के पीट्ट बनकर काम नारायण मिश्र, शशिभूषण चटर्जी, गोपाल राम गहमरी, कर रहे हैं। स्वच्छ पत्रकारिता के साथ-साथ पीत पत्रकारिता भी बालमुकुन्द गुप्त जैसे दिग्गज हिन्दी समाचार पत्रों के संपादक थे। घुस गई है। हिन्दी पत्रकारिता की जन्मस्थली कोलकाता में भी इन समाचार पत्रों ने देशवासियों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों पत्रकारिता प्रलोभन का शिकार है। पत्रकार अर्थसत्ता के सामने और स्वदेश के प्रति जागरूक बनाया। पूना से प्रकाशित 'हिन्द हाथ फैलाए हुए हैं। कई समाचार पत्रों की स्थिति भी कमोवेश केसरी' इलाहाबाद से 'स्वराज्य' ने स्वतंत्रता आन्दोलन को गति ऐसी है। जो पत्रकार भूखे रहकर, जेल जाकर तथा दण्डित दी। इन समाचार पत्र के सम्पादकों को अंग्रेजी शासकों का होकर भी अपने पत्रकारिता धर्म की पालना करना गर्व समझते कोप-भाजन बनना पड़ा। वहीं हिन्दी पत्र स्वतंत्रता आन्दोलन के थे, अब वही पत्रकार बिना मूल्यों की पत्रकारिता करते हैं और अगुवा सिद्ध हुए। राष्ट्रीय चेतना के अभ्युदय से आजादी का मार्ग कोड़ियों में उनको खरीदा जा सकता है। हिन्दी पत्रकारिता के प्रशस्त हुआ। वहीं हिन्दी पत्रकारिता स्वतंत्रता आन्दोलन की उद्गम से विकास की अब तक की यात्रा में यह विसंगति राष्ट्रीय स्वर्ण गाथा बन गई। हिन्दी के समर्पित पत्रकारों का जीवनपत्रकारिता में कलंक के रूप में जहां-तहां दिखाई देती है। पूरे इतिहास बताता है कि उनकी लेखनी से अंग्रेजों को भारत छोड़ना देश पर इसका असर व्याप्त है। पड़ा। इसके बाद की पत्रकारिता व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के नवप्रारंभिक काल की हिन्दी पत्रकारिता ने राष्ट्रीय जीवन में निर्माण के प्रति संकल्पित हो गई। १९४८ से १९७५ तक की चेतना के बीज बोने, राष्ट्रीय निष्ठा जगाने, राष्ट्रीय क्रांति का स्वातंत्रोत्तर पत्रकारिता ने राष्ट्रीय निर्माण का कार्य किया। आज ० अष्टदशी/1750 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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