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________________ उपाध्याय, भोला शंकर व्यास, गिरधर शर्मा "नवरत्न", पं. अनुवाद हमें अब तक उपलब्ध हुए हैं जिनमें से १२४ (एकसौ काशीनाथ त्रिवेदी, पं० गिरधारीलाल शास्त्री, डॉ० शंकरदयाल चौबीस) अनुवादों का एक वृहद् संकलन (ग्रंथ) लगभग शर्मा, मोतीलाल मेनारिया, डॉ० भगवतीलाल व्यास आदि ने इस ११५० (एक हजार एक सौ पचास) पृष्ठों में "भक्तामर स्तोत्र की श्रेष्ठता से मुग्ध प्रभावित हो मुक्तकंठ से प्रशंसा की भारती" नाम से प्रकाशित हो चुका है जिसका प्रकाशन श्री है। इतना ही नहीं हर्मन जैकोबी ने जर्मन भाषा में, क्राउसे महाशय खेमराज जैन चैरिटेबल ट्रस्ट सागर से हुआ है और संकलन और अशोक कुमार सक्सेना ने आंग्ल भाषा में, पं० गिरधर शर्मा सम्पादन स्व० पं० कमलकुमार जैन शास्त्री “कुमुद" खुरई नवरत्न' ने समश्लोकी हिन्दी भाषा में, पं० गिरधारीलाल शास्त्री (जिला-सागर म०प्र०) और इस आलेख के लेखक (विपिन ने राजस्थानी की विभाषा मेवाड़ अंचल में बोली जाने वाली भाषा जारोली, कानोड़) ने किया है। इस ग्रंथ का द्वितीय संस्करण भी मेवाड़ी में, पं० देवदत्त ओझा ने लघु छन्द दोहा में तथा हेमराज प्रकाशित हो चुका है। पाण्डेय, पं० बालकृष्ण शर्मा, पं० बालमुकुन्द जोशी, ओम राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की प्रकाश कश्यप आदि कई विभिन्न भाषा-भाषी विद्वानों, पंडितों, मासिक पत्रिका "जागती जोत' के यशस्वी सम्पादक कवियों, अनुवादकों साहित्यानुरागी श्रद्धालुओं ने इस स्तोत्र का साहित्यकार डॉ० भगवतीलाल व्यास के आलेख : - विविध भाषा, छन्दों, राग-रागिनियों में पद्यानुवाद कर अपने "भक्ति एवं काव्य का अनूठा संगम भक्तामर भारती" आपको गौरवान्वित किया है। कई विभिन्न भाषा-भाषी विद्वानों ने के अनुसार “भक्तामर भारती में सर्वाधिक चौरानवे अनुवाद इस स्तोत्र पर टीकाएं, इसके प्रभाव से सम्बन्धित कथा हिन्दी में हैं। मराठी में नौ, गुजराती में आठ, राजस्थानी में व उर्दू कहानियां, वार्ताएँ लिखीं। कई श्रद्धालु-भक्तों ने इसके आधार पर में दो-दो, बंगाली, अवधी, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी तथा मेवाड़ी अपने आराध्य की स्तुति स्तवना में विभिन्न स्तोत्रों की तथा कुछ में एक-एक अनुवाद प्रकाशित है। इस ग्रंथ के सम्पादकों को यह कवियों ने इसके पदों को लेकर पाद पूर्ति स्तोत्रों की रचनाएं की। श्रेय जाता है कि छत्तीस ऐसे पद्यानुवाद हैं जो कि अप्रकाशित कुछ विद्वानों ने इसके श्लोकों में प्रयुक्त शब्दों के उच्चारण से हैं, उन्हें शोधकर इस संकलन में सम्मिलित कर प्रकाशित किये उत्पन ध्वनि तरंगों को रेखांकित कर यंत्रों की तथा अक्षरों का अक्षरों से तारतम्य बिठाकर ऋद्धियों, मंत्रों, बीजाक्षरों की सर्जनाएं की। कुछ पंडितों, क्रिया काण्डी/क्रियाकर्मियों ने स्तोत्र "भक्तामर भारती' के सम्पादक द्वय की चयन दृष्टि की का पाठ करते समय वातावरण शद्ध और चित्त/मन एकाग्र रहे श्लाघा इस दृष्टि से भी की जानी चहिये कि पहली बार किसी इस दृष्टि से पूजा-अर्चना के विधि-विधान निर्मित किये, इसके । कृति के इतने सारे पद्यानुपाठ पाठकों एवं श्रद्धालुओं को उपलब्ध अतिरिक्त कई श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी दृष्टि से अपनी-अपनी करवाए गए हैं। इस संकलन में सबसे पुराना पद्यानुवाद श्री भाषा में इस स्तोत्र के अनुवाद किये, व्याख्याएं तथा विवेचनाएं। हेमराज पाण्डेय द्वारा किया गया है, जिसका काल १६७० ई० लिखी। कई श्रद्धालुओं ने इसे स्वर, लय, तालबद्ध कर गाया है। "भक्तामर भारती" में संकलित इतने सारे पद्यानुवादों का और कैसेट्स तैयार किये। कई भक्त कलाकारों ने इसके । होना इस बात का द्योतक है कि मूल कृति (भक्तामर स्तोत्र) श्लोकों के भावों को कल्पना में संजोकर इसे चित्रित किया, अपने आप में कितनी उत्कृष्ट एवं लोकप्रिय है। ऐसे युनिवर्सल सचित्र संस्करण प्रकाशित किये और विडियों कैसेट्स तथा एप्रोच वाले ग्रंथों का प्रणयन कभी-कभी ही हो पाता है। इस सी०डी० बनाये। संकलन / ग्रंथ से आम पाठकों, श्रद्धालुओं, साहित्य मर्मज्ञों तथा शोधार्थियों को बड़ी सुविधा हो गई है। भक्तामर स्तोत्र की सर्व प्रियता, मान्यता एवं महात्म्य का जहां तक सम्बन्ध है, यहां यह उल्लेख करना अप्रासंगिक व निःसन्देह "भक्तामर भारती" अपने आप में अद्वितीय अतिशयोक्ति पर्ण न होगा कि जैन धर्म में अनेकानेक दोनों में एवं अनूठा ग्रंथ है और भक्तामर स्तोत्र भक्ति रसात्मक साहित्य विविध आकार-प्रकार में यदि किसी स्तोत्र के सर्वाधिक में एक काजलया स्तोत्र है। संस्करण लाखों लाख प्रतियों में प्रकाशित हैं तो वे एक मात्र दीवाकर दीप, गांधी चौक, कानोड़ "भक्तामर स्तोत्र" के ही हैं। इस आलेख को समाप्त करूं इसके पूर्व में पाठकों का ध्यान एक ऐसी उपलब्धि की ओर आकर्षित करना चाहूँगा कि इस स्तोत्र के विभिन्न भाषाओं में हुए १३१ (एक सौ इकतीस) ० अष्टदशी / 1730 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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