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समझाती हैं। एक ओर कर्मयोग की परम्परा है तो दूसरी ओर भक्तियोग की धारा ।
इस पावनधरा की सांस्कृतिक परिपक्वता का ही कमाल है। जहाँ मातृभूमि की रक्षा हेतु प्रताप घास की रोटियों पर निर्वहन करते हैं, लक्ष्मीबाई, सावरकर, भगतसिंह, शिवाजी इस धरा के स्वाभिमान की रक्षा हेतु प्राणों की आहुतियाँ देते हैं। हमारी संस्कृति की ही विशेषता है जहाँ पर विश्वविजेता सिकन्दर को परास्त कर उसे क्षमादान भी दिया जाता है। 'क्षमा वीरस्य भूषणम्' का मंत्र दिया।
वर्तमान युग महत्वकांक्षाओं एवं स्पर्धाओं से भरा युग है । चहुं ओर एक होड़ की दौड़ दृष्टिगत हो रही है। विकसित देश अपने संसाधनों के जरिये पूरे विश्व में अपना पूरा वर्चस्व कायम करने को आतुर हैं। तरह-तरह के आयुधों एवं प्रतिबंधों से विश्व
देशों की भयभीत करते हैं लेकिन भारतवर्ष की उर्वरा संस्कृति का ही परिणाम है इस देश में पैदा हुए मानव रत्नों ने हर तकनीक का भारतीय संस्करण तैयार कर अपने को श्रेष्ठ साबित कर दिया है। अब तो विकसित देश घबरा कर आउटसोर्सिंग का रोना रो रहे हैं। भारत की सांस्कृतिक परम्परा में पले बढ़े सपूत पूरे संसार में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। अपनी कौशलता का लोहा मनवा रहे हैं।
हमने कर्ण, विक्रमादित्य जैसे दानियों, कौटिल्य जैसे अर्थशास्त्री, मनु जैसे समाजसंरचक, मीरा, कबीर, सूर, तुलसीदास जैसे भक्तिवान उपदेशकों, मर्यादापुरुषोत्तम राम, कर्मयोगी कृष्ण, अशोक, अर्जुन, प्रताप जैसे शूरवीरों, भगवान महावीर, बुद्ध जैसे महामानवों की धरती पर जन्म दिया है। हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं की ही देन है कि हमारे देश में हजारों जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों के लोग आज भी पूरी आत्मीयता, बंधुत्व, सहिष्णुता एवं परस्पर सहयोग कर शांति से निवास करते हैं। यह सब समृद्ध भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक परम्पराओं की देन है। हमारी सांस्कृतिक परम्पराएँ एक माला का स्वरूप है जिसमें विभिन्न सम्प्रदाय एक मोती की तरह पिरोये गये हैं।
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हमारी प्राचीन एवं समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं के कारण भारतवर्ष पहले भी विश्वगुरु था और हम सब यह संकल्प करें कि भविष्य में फिर भारत विश्वगुरु के पद पर आसीन हो ।
भारत की वीरांगनाएँ अपनी परम्परा एवं मर्यादाओं की रक्षा हेतु जौहर करती हैं तो दूसरी ओर प्रकृति की रक्षा हेतु पेड़ों को बचाने अपनी जान न्यौछावर कर देती हैं ऐसी महान सांस्कृतिक परम्पराओं की धरती को नमन् ।
कपासन, जिला : चित्तौड़गढ़ (राज.)
भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं में ही समन्वय, संवाद, सहयोग, मानवता, दया, करुणा, स्नेह, आत्मीयता, सम्मान, सत्कार जैसे अमूल्य गुण पाये जाते हैं, संसार में अन्यत्र नहीं । विकसित देशों ने अपरोक्ष रूप से हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं को दूषित करने हेतु विभिन्न माध्यमों के जरिये एक भारी अभियान चला रखा है इनमें इलेक्ट्रानिक मिडिया अहम है। विभिन्न सेटेलाइटों के जरिये कई दूषित कार्यक्रमों का प्रसारण कर हमारी सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक परम्पराओं, सामाजिक मर्यादाओं एवं हमारे रहन-सहन के शालीन तौरतरीकों को दूषित कर हमारी युवा पीढ़ी को हमारी परम्पराओं से विलग करने पर तुले हुए हैं। एक बार फिर हम सबकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि प्राचीन काल से अब तक हमारी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को हमारे पूर्वजों ने सुरक्षित रखा है। हमें भी उसी परम्परा को कायम रखते हुए इसकी रक्षा करनी होगी अन्यथा दूषित संस्कृति के भटकाव से हमारी भावी पीढ़ी तो अंधकार के गर्त में जायेगी ही साथ ही हमारी पुरातन, सनातन संस्कृति जो वर्षों से अक्षुण्ण रही है, वह अपना असली स्वरूप कहीं खो नहीं दे। आज हमें इसकी चिंता कर हमारे युवाओं को यह सीख देनी होगी कि हमें इस बात का गर्व होना चाहिये कि
० अष्टदशी / 1580
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