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________________ प्रकाश मानव भारत में २९ जनवरी १७८० को हिक्की गजट एवं द बंगाल एसियाटिक गजट के प्रकाशन के साथ ही पत्रकारिता युग का सूत्रपात ह । १७८५ में मद्रास कोरियर, १७९५ में मद्रास गजट एवं १८१८ में बंगाल गजट प्रारंभ हुआ। ३० मई १८२६ को उदन्त मार्तण्ड अखबार ने पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष स्थान तय किया। १८३८ में टाईम्स ऑफ इण्डिया के पश्चात् पत्रकारिता के क्षेत्र में एक लम्बी श्रृंखला स्थापित हुई और इसी श्रृंखला ने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया तभी तो अकबर इलाहाबादी ने कहा था 'खिंचो न कमानो को न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो, अर्थात बंदूक की गोलियों से दो चार आदमी मरते हैं किंतु अखबार की एक खबर से हजारों लाखों की भावनाएं आहत होती हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में ज्यों-ज्यों बाढ़ आती गई त्यों-त्यों पत्रकारिता लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप में मुखर होती गयी। देश के अभ्युत्थान के लिए निर्धनता, भूखमरी और विषमता से संघर्ष करना ही पत्रकारिता का धर्म, कर्म और मर्म है। समाचार पत्र संसार की बड़ी ताकत है, पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी लोकतंत्र के निर्वहन की है, इसी कारण इसे प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में माना जाता है। पत्रकारिता के संदर्भ में कहा जाता है कि सूली का पथ ही सीखा उन है, सुविधा सदा बचाता आया, मैं बलिपथ का अंगारा हूं, जीवन ज्वाला जलाता आया । जैन धर्म प्राणी मात्र के कल्याण की कामना करता है। जैन पत्रकारिता का यही उद्देश्य है कि जहां तक हो सके पत्रकारिता के माध्यम से अहिंसा के विचारों को प्रतिपादित करना ताकि कम से कम हिंसा हो। 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः' की सुन्दर भावना इस सिद्धांत में प्रकट होती है। कटुता का कलह संसार में विषमता का वातावरण घोलता है इसको हिंसा से नहीं आधुनिक युग मे जैन पत्रकारिता मिटाया जा सकता। अहिंसा के द्वारा ही एक मात्र शांति स्थापित एवं उसका योगदान की जा सकती है और यही अहिंसा प्राणी मात्र पर दया की भावना से अभिभूत हो उसे निर्भरता का पाठ पढ़ाती है। महात्मा गांधी ने जीवदया की भावना को जैन धर्म के घेरे से निकालकर प्राणीमात्र के धर्म से जोड़ दिया सत्याग्रह में हमेशा उन्होंने जीवदया पर जोर दिया। यही कारण था कि हजारों क्रांतिकारी आंदोलन होने के बाद भी देश को आजादी नहीं मिल सकी, वहीं सत्याग्रह के प्रयोग से आजादी का पथ प्रशस्त हुआ । Jain Education International पत्रकारिता को लोकतंत्र का मुखर प्रहरी बनाने में अहिंसा, सत्य एवं समानता को लेकर एक विचारधारा प्रस्फुटित हुई, इस विचारधारा को जैन सिद्धांतों के अनुगामी विभिन्न साधु भगवंतों एवं जैन श्रावकों ने पल्लवित किया और यही विचार धारा आगे चलकर जैन पत्रकारिता के रूप में विख्यात हुई। जैन धर्म की अहिंसा के आधार पर पत्रकारिता के सिद्धांतों को जनसामान्य के सामने लाने का प्रयास समय-समय पर विभिन्न विद्वानों ने किया इसमें मुनि कांतिसागर से लेकर अगरचंद नाहटा एवं बाबू लाभचंद छजलानी से लेकर राजेन्द्र माथुर तक के विद्वान पत्रकारों का अविस्मरणीय योगदान है। जैन पत्रकारिता शाकाहार की भावना को भी उद्घोषित करती है। विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धांतों से हजारों वर्ष पूर्व जैन तीर्थंकरों ने शाकाहार की महिमा जैन ग्रंथों में लिखी। जैन पत्रकारिता में शाकाहार की भावना को विशेष बल दिया है। जैन विश्वभारती विश्व विद्यालय लाडनू एवं कोलकाता विश्वविद्यालय में जैन दर्शन पर आधारित पत्रकारिता में कहा है कि शाकाहार का सम्बंध व्यक्ति के विचार से जुड़ा है। पत्रकारिता में शुचिता को बनाए रखने के लिए शाकाहार अत्यंत आवश्यक है। अर्थात 'जैसा खावे अब वैसा होवे मन की भावना का प्रभाव पत्रकारिता में अवश्य पड़ता है। शाकाहार व्यक्ति को आत्मिक शांति के साथ सात्विक विचार प्रदान करता है वहीं साथ ही पत्रकार शाकाहार के माध्यम से विश्वशांति में अपना अनूठा योगदान देता है। आज की पत्रकारिता ग्लेमर एवं चटपटी खबरों से भरी रहती है। अधिकांश अखबार हिंसात्मक समाचारों को प्रमुखता ० अष्टदशी / 1420 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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