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५. यह सब तो लौकिक शिक्षा के बातें हुई हैं परन्तु जब समस्त संसार के एक राष्ट्र की कल्पना हो तो छात्रों में कुछ और भी गुण प्राप्त करने की कराने की, तैयारी होना चाहिये। एक राष्ट्र बनने पर हमें बंधुता की, समानता की, समता की आवश्यकता होगी। और इससे आगे बढ़कर जाति, भाषा, लिंग, परंपरा आदि के भेदों का भुलाकर सांस्कृतिक गौरव और सभ्यता के पृथकता वाले लक्षणों से हटकर, सज्जनता, सहानुभूति, निम्नवर्ग, को ऊपर उठाने की भावना आदि को प्रबल बनाने की आवश्यकता रहेगी। कुल मिलाकर व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने के साथ चारित्रिक गुणों को सिखाने की भी जरुरत होगी। धार्मिक शिक्षण-चरित्र शिक्षा इसे किसी भी नाम से पुकारा जाय परन्तु ऐसी शिक्षा भी जरुरी हो जायेगी। इस पर अधिक विचार करने का काम शिक्षाविदों का है- वे इस पर ध्यान देवें। सहायक आयुक्त, के० वि संगठन (निवृत्त)
अहमदाबाद
० अष्टदशी / 1290
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