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अभयकुमार पांडे, एम.एस.सी., बी.एड.
आदिम महाविस्फोट (बिग बैंग) ऋग्वेद का एक सूक्त है - "को अद्धा वेद क इह प्रवोचत्
कुत्त आजाता कुत इयं विसृष्टिः । अर्वाग् देवा अस्य विसर्जनेना
ऽथा को वेद यत आबभूव । इयं विसृष्टिर्यत आबभूव
यदि वा दधे यदि वा न । यो अस्याध्यक्ष: परमे व्योमन्
सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ॥" अर्थात् यह सृष्टि किससे उत्पन्न हुई, किसलिए हुई, इसे वस्तुत: कौन जानता है? देवता भी बाद में पैदा हुए, फिर जिससे यह सृष्टि उत्पन्न हुई उसे कौन जानता है?
किसने विश्व को बनाया और वह कहाँ रहता है, इसे कौन जानता है? सबका अध्यक्ष परमाकाश में। वह शायद इसे जानता है अथवा वह भी नहीं जानता।
विश्व की उत्पत्ति संबंधी जिज्ञासा, मानव चिंतन के इतिहास में बहुत पुरानी है। रात्रि के समय आकाश के तारों को देखकर सहज ही जिज्ञासा होती है कि ये क्या हैं? कितनी दूर हैं? संसार का विस्तार कहाँ तक है? सृष्टि का आरंभ कब हुआ? कैसे हुआ? इसका अंत कब और कैसे होगा?
मिथकों की भाषा में सीमित प्रेक्षणों के आधार पर इन सवालों के उत्तर प्रस्तुत करने का प्रयास प्राय: सभी प्राचीन सभ्यताओं ने किया। ऋग्वेद का एक ऋषि कहता है कि शायद परमात्मा भी नहीं जानता कि यह सृष्टि उत्पन्न कैसे हुई थी? किससे हुई? किसलिए हुई? ऊपर उल्लिखित श्लोक से यह स्पष्ट है और ऋग्वेद का ही ऋषि आगे चुनौती देते हुए कहता है
____ "इह ब्रवीतु य उ तच्चिकेतत्' यानि यह सब जानने वाला यदि कोई है तो यहाँ आकर बताए।
इस चुनौती को स्वीकार करना खेल नहीं था। हाल ही में इस पुरातन चुनौती को स्वीकार करने में वैज्ञानिक समर्थ हुए हैं। इस चुनौती के संभाव्य उत्तर देने में वैज्ञानिकों ने विभिन्न अनुसंधानों जिसमें खगोलभौतिकी, नाभिकीय-भौतिकी, खगोलीय गणित के क्षेत्रों की मदद से करने का प्रयास किया है।
बीसवीं सदी के लगभग दूसरे दशक तक भी कोई वैज्ञानिक तारों के परे विश्व का विस्तार कहाँ तक है, नहीं जानता था। तीसरे दशक में अमरीकी खगोल शास्त्री 'एडविन हब्बल' ने बताया कि हमारी आकाशगंगा के परे अनेक मंदाकिनियाँ मौजूद हैं। ये सब समूह या गुच्छ बनाती हैं। एक गुच्छे में २५-३० से लेकर एक हजार तक मंदाकिनियाँ हो सकती हैं। करीब सात दशक पहले मंदाकिनियों के बारे में एक और अत्यंत महत्व की जानकारी मिली। इसके अनुसार दूर की मंदाकिनियाँ हमसे अधिक दूर भाग रही हैं। जो हमसे अधिक दूर हैं वे
और अधिक वेग से पलायन कर रही हैं। 'एडविन हब्बल' ने पलायन, वेग और मंदाकिनियों की दूरी से संबंधित एक नियम भी प्रस्तुत किया।
अब यदि 'एडविन हब्बल' के तर्क की तरफ ध्यान दें तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि जो चीज हमसे दूर जा रही है वह निश्चित रूप से कभी पास रही होगी। अतीत में एक समय ऐसा भी रहा होगा जब सभी मंदाकिनियाँ एक दूसरे के बहुत नजदीक हों।
यदि हम एक फूले हुए गुब्बारे की कल्पना करें जिसके ऊपरी सतह पर फैलाव हो तथा इसमें और हवा भरी जाय तो यह निरंतर फैलेगा और एक समय ऐसा होगा जब यह विस्फोट के साथ फट जायेगा। इसी प्रकार मंदाकिनियों के गुच्छ, जब संतुलन-विचलन के प्रभाव से महाविस्फोट के रूप में अलग हुए तो खगोलविदों ने इस घटना को बिग-बैंग का नाम दिया। यह घटना एक कल्पना ही है, परन्तु 'हब्बल' के नियम से प्रभावित होकर सत्य प्रतीत होती है।
विश्व के समस्त द्रव्य एवं ऊर्जा के बारे में भी हम कह सकते हैं कि अतीत में सारा द्रव्य एक स्थान पर पुंजीभूत था और एक महाविस्फोट की विलक्षण घटना ने उसका छितराव कर दिया।
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