________________
वार्ता प्रसंग चला? "हाँ, उन्होंने (आइंस्टीन ने) थ्योरी ऑफ ओंकार श्री
प्रोबेबिलिटी व रिलेटीविटी का जिक्र छेड़ते हए जैन धर्म के स्याद्वाद के तालमेल का भावमय प्रतिपिादन कर भारतीय अध्यात्म के प्रति गहरी कृतज्ञता प्रगट की।" जैन धर्म से बड़ा कोई विश्व धर्म नहीं : ___ डॉ० कोठारी ने मुझे बताया कि उक्त भाव व्यक्त किया, विश्व के महान भौतिकी वैज्ञानिक एवं अणु-शक्ति जनक आइंस्टीन ने १८ अप्रैल १९५५ के दिन प्रिंस्टन अस्पताल में अपना नश्वर शरीर त्यागने की कुछ घड़ी पहले, पास खड़ी एक परिचारिका से।"
बातों ही बातों में पता ही नहीं चला कि अरूणोदय हो चुका है। "इस जैनाइंस्टीन चर्चा को अभी विराम! “आज २६ मार्च है, आपका जन्म दिन। जय हो 'जैनोम' (जैन ओम) की।' यह बोल डॉ० कोठारी चुपचाप चल दिए।
उदयपुर की एक ढलती सांझ। डॉ० कोठारी सांध्य भ्रमण से लौटते दिखे, एक तुड़ी मुड़ी देसी तड़ी टेकते। अपने भूपालपुरा स्थित बंगले के आगे मुझे प्रतीक्षारत देख मेरा अभिवादन स्वीकारते हुए सीधी सादी बनावट के बरामदे में मेरे साथ बैठे सील शर्बत पीते, डा० सा० बोले, "हाँ, तो क्या विधि योग है
कि आज मेरा जन्म दिन है और आज की उपनिषद में आत्मावान बीसवीं सदी के मानवतावादी भारतीय वैज्ञानिक डॉ० महान आइंस्टीन महोदय के बारे में आधे घंटे बतियायेंगे अपन।" दौलतसिंह कोठारी, विनम्रता के सहज प्रतीक थे। उदयपुर के
मैंने चर्चा सूत्र पकड़ा और जानना चाहा डा० सा० से आइंस्टीन अपने निवास पर जीवन के अंतिम वर्षों में गाहे-बगाहे सांध्यबेला महोदय के जैनोलॉजी के रूझान बाबत। डॉ० सा० बोले- यह में, आध्यात्मिक विचारकों की गोष्ठी परम्परा निभाते रहे। गोष्ठी
सुखद रहस्य है कि आइंस्टीन महोदय ने जैन शास्त्रों के जर्मन में डॉ० कोठारी, मुझे लगा मौन भाव से आध्यात्मिक ग्रंथ चर्चा
अनुवादों का स्वाध्याय सापेक्षत सिद्धान्त सिद्धि की ओर बढ़ते, के दौर में एक प्रशांत श्रावक के रूप में तलाशते थे विज्ञान व
व्यस्त काल बेला में समय निकाला भी तो कैसे? एक बात बता अध्यात्म के सम्यक् सूत्रों को।
दं कि वे भले जैन न थे पर उनकी जैनत्व आस्था वाली धारणा
थी बड़ी प्रबल। वे पक्के अपरिग्रही थे। एक ही साबुन से शेव, डॉ कोठारी, प्रज्ञा सम्पन्न सतर्क जैन चिन्तक थे नितान्त
कपड़ों की धुलाई, उसी से कभी कभार स्नान करते थे। गिनती संवेदनशील। एक दिन अल सबेरे प्रात: भ्रमण से लौटते भूपालपुरा
की कपड़ा जूता जोड़ी। एक छड़ी। एक घड़ी। एक रूमाल। स्थित मेरे किराये के मकान पर आ पहुँचे। मेरा आदर स्वीकारते
अल्पाहारी। मितभाषी और पक्के शाकाहारी थे। धन जोड़ा नहीं। हुए चाय-पान के दौरान मुझसे पूछ बैठे 'ओमजी' ॐ शब्द की
देना सीखा, जो अतिरिक्त है वो जरूरतमंदों का। आपकी व्याख्या सुनूं मैं ? मैं अभिभूत भाव से बोल पड़ाॐ तो बैठा है शांत भाव से ATOM के शब्दायतन तन में..
वीतरागी हो तो आइंस्टीन-सा :
मैंने डॉ० कोठारी की बात तन्मयता से सुनी और मुझसे डॉ० कोठारी एटम में 'ओम' के वास स्थान की मेरी सूत्र
पूछे बिना नहीं रहा गया कि "सन् १९३२" में, सुना है जर्मनी व्याख्या सुन पुलकित होते बोले- “काश मैं अलबर्ट आइंस्टीन
के एक जैन संस्थान को, अपनी ओर से एक बड़ी राशि समर्पित महोदय की 'ओम' जिज्ञासा को शांत कर पाता इस तरह। मैं
की थी, इसका पता आपको अवश्य होगा, प्रकाश डालें इस उत्साहित हो पूछ बैठा उनसे डा० सा० आपकी व आइंस्टीन महोदय की ऐतिहासिक भेंट के दौरान, जैन धर्म व दर्शन पर
अलबर्ट आइंस्टीन जैसा..
पर
० अष्टदशी / 1000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org