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________________ केवलचंद कांकरिया सहसंयोजक - धर्म सभा को धर्मसभा का आयोजन, अष्टमी तथा चतुर्दशी को सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध एवं धर्मचर्चा के कार्यक्रम नियमित रूप से चलते थे। आसपास के इलाके के निवास करने वाले बुजुर्ग प्रात:काल सामायिक एवं धर्म आराधना हेतु भी सभागार का उपयोग करते थे। पर्युषण पर्व के आठ दिनों में संत सतियों हेतु उपयुक्त आवास-व्यवस्था के अभाव में स्वाध्यायी बंधुओं को आमंत्रित किया जाता था तथा उनके सानिध्य में पर्युषण पर्व की आराधना का क्रम विधिवत निरन्तर चल रहा है। कोलकाता महानगर में स्वाध्याय भवन की कमी निरन्तर खलती रही है। प्रारम्भ में विद्यालय भवन के बगल में चीना बाजार की कुछ जमीन को खरीदने का प्रयास काफी वर्षों तक चलता रहा ताकि आराधना भवन का निर्माण किया जा सके, किन्तु उस कार्य में सफलता नहीं मिल सकी और संभवत: उसके बाद आराधना-भवन की व्यवस्था हेतु कभी चिन्तन भी नहीं किया गया। गुरु बिना ज्ञान नहीं होने के अनुसार संतसंतियों के चातुर्मास अथवा संक्षिप्त समय के लिए भी आवास की व्यवस्था होने पर उनके सान्निध्य मे ज्ञान अर्जित करना एवं धर्म आराधना करने के लाभ से अभी तक वंचित ही रहना पड़ा है। इन पांच दशक की अवधि में महानगर में स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन परिवारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उन्हें स्वाध्याय भवन की अत्यंत आवश्यकता महसूस हुई है और नगर के विस्तार के साथ-साथ आंचलिक क्षेत्रों में भी स्वाध्याय भवन निर्माण की ओर समाज का ध्यान गया है। भवानीपुर क्षेत्र में २६/१, रमेश मित्रा रोड में महावीर सदन की स्थापना सन् २००२ में हुई। हावड़ा तथा काकुड़गाछी इलाके में स्वाध्याय भवनों की व्यवस्था हेतु सक्रिय प्रयास आरम्भ किये जा चुके हैं तथा अति शीघ्र ही इस ओर सफलता मिलने की संभावना दृष्टिगोचर हो रही है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा अपने अमृत महोत्सव के पावन प्रसंग पर बड़ाबाजार अथवा मध्य कोलकाता क्षेत्र में समता-भवन के निर्माण का निर्णय लेवे ताकि आराधना के क्षेत्र में भी सभा का महत्वपूर्ण एवं आवश्यक योगदान हो सके। स्वाध्याय भवन (समता-भवन) श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा कोलकाता के अमृत महोत्सव के मांगलिक प्रसंग पर हार्दिक शुभकामनाएं, किसी संस्था अथवा सभा का आठ दशक तक निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहना अपने आपमें एक गौरव का विषय है। साधना के मूल उद्देश्य को लेकर सभा ने शिक्षा एवं सेवा के विभिन्न आयामों में अपनी सक्रियता प्रकट की है और नगर तथा आंचलिक क्षेत्रों में जैन विद्यालयों, जैन कॉलेज जैन चिकित्सालय आदि शिक्षा एवं सेवा के क्षेत्र में बहुविध सफलता प्राप्त करने का प्रयास किया, यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है। सभा के कर्मठ कार्यकर्ता, पदाधिकारी एवं सदस्यों की सक्रियता एवं हार्दिक लगन का ही यह सुफल है। सन् १९५२ में मैंने अपना कर्मक्षेत्र पश्चिम बंगाल के महानगर एवं राजधानी कोलकाता में प्रारम्भ किया था और करीब पचास वर्षों से सभा से नियमित रूप से जुड़े रहने का सौभाग्य मुझे प्राप्त है। साधना की प्रवृत्तियों में भाग लेने का अवसर मुझे फूसराज बच्छावत मार्ग (सुकियस लेन) में विद्यालय भवन के निर्माण एवं द्वितीय माला में विशाल सभा कक्ष की व्यवस्था के बाद ही प्राप्त हुआ था। प्रत्येक रविवार ० अष्टदशी /570 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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