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________________ अशोक बच्छावत सचिव, श्री जैन शिल्प शिक्षा केन्द्र श्री जैन शिल्प शिक्षा केन्द्र के बढ़ते चरण श्री जैन शिल्प शिक्षा केन्द्र १९९० से आज २००८ तक प्राचार्य श्री भूपराज जैन और उनके अवकाश ग्रहण के पश्चात् श्री अरुणकुमार तिवारी और राधेश्याम मिश्र के सुदृढ़ एवं सफल निर्देशन में अनवरत चल रहा है। इसके दोनों विभाग-माध्यमिक एवं उच्च-माध्यमिक में छात्र-छात्राओं की भर्ती वर्ष में एक बार जुलाई-अगस्त माह में होती है। प्रति वर्ष सैंकड़ों की संख्या (सैंकड़ों इसलिए कि कोई भी शिक्षण संस्थान ५०० से अधिक छात्र-छात्राओं को एक सत्र में भर्ती नहीं कर सकता) में यहाँ भर्ती होती है और उत्तीर्ण छात्रों का औसत अंक ७० प्रतिशत के आस-पास होता है। हमारे यहाँ गरीब विद्यार्थियों की भी भर्ती होती है तथा आवश्यकतानुसार उनकी फीस आधी या पूरी माफ और किसीकिसी को तो फार्म भरने तथा परीक्षा फीस भी संस्था के माननीय सदस्य दे देते हैं। कामगार महिलाएँ, गृहिणी आदि भी हमारे यहाँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं एवं समाज में, कार्यालय में अपनी योग्यता स्थापित की है। मुक्त विद्यालय की अत्यधिक सुविधाओं का लाभ ये विद्यार्थी बराबर उठाते हैं। इसकी परिसेवा का विस्तार होने के कारण केन्द्रीय मंत्रालय ने सन् २००२ में इसका नाम बदल कर 'राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान' कर दिया। तकरीबन १ लाख से अधिक छात्रों को २७०० विद्यालयों एवं ११ क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। उसकी कुछ सुविधाओं का सीधा लाभ छात्र/छात्रा उठाते हैं। एक बार भर्ती होने का अर्थ है पाँच साल का पंजीकरण। इन पाँच वर्षों में छात्र अपनी सुविधानुसार परीक्षा दे सकता है। वर्ष में २ बार परीक्षाएँ होती हैं। कुल मिलाकर एक छात्र को ९ सुयोग मिलते हैं। विषय का चयन इच्छामूलक (स्वैच्छिक) है। सिर्फ ६ या ७ विषय चुनना है जिसमें ५ विषय में पास करना आवश्यक है। इसके अलावा छात्र अल्प समय के दूसरे व्यावहारिक विषयों में भी प्रवेश ले सकते हैं। अब तो इंटरनेट से भी प्रवेश एवं परीक्षा दी जा सकती है जो अन्य विद्यालयों या निकायों में उपलब्ध नहीं है। भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होने के कारण भारत के अन्य विद्यालयी संस्थानों ने भी इसे मान्यता दी है। इससे उत्तीर्ण छात्र दूसरे विश्वविद्यालयों में भी भर्ती हो सकते हैं। इसके अलावा इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय तो है ही। फिर छात्र क्यों न इनका लाभ लें? हमारा विद्यालय भी इन सुविधाओं से युक्त है और हमारे छात्रगण इन सुविधाओं का भरपूर लाभ लेते हैं। हमें विश्वास है कि हमारा विद्यालय भविष्य में भी चलता रहेगा और इन सुविधाओं से छात्रों की मदद करता रहेगा। ११० करोड़ आबादी वाले हमारे भारत में शिक्षा का स्तर काफी नीचे है। मल कारण आजीविका का अभाव, जनसंख्या का निरन्तर बढ़ना। लोग जहाँ एक वक्त की रोटी के लिए छोटे बच्चों को काम करने के लिए भेजते हैं, वहाँ शिक्षा का हश्र यही होना है। केन्द्रीय सरकार ने इसे देखा, सोचा और समझा। फलतः उसने 'मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अन्तर्गत १९८९ में 'राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय' की स्थापना की। इसका उद्देश्य कर्मरत लड़के/लड़कियों को, हरिजन जातियों एवं प्रजातियों को, ग्रामीण युवकों को, विवाहित/अविवाहित महिलाओं को, विकलांगों को, यहाँ तक की मूक-बधिरों को भी शिक्षा-दान करना है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा, जो कलकत्ता के अग्रणी संस्थाओं में से एक है एवं जो सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन एवं सम्यक् चारित्र के आधार पर श्री जैन विद्यालय जैसे शत-प्रतिशत उत्तीर्ण छात्रों के कई स्कूल चलाते हैं, को यह उद्देश्य काफी अच्छा लगा। संस्था ने १९९० में 'श्री जैन शिल्प शिक्षा केन्द्र' की स्थापना की एवं राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से अनुमोदन ग्रहण कर छात्रों-छात्राओं की भरती आरंभ कर दी। ० अष्टदशी / 550 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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