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परिशिष्ट : २
सम्पादक मंडल परिचय
प्रस्तुति-डॉ० भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु', दमोह
डॉ० दरबारीलाल कोठिया, न्यायाचार्य :
। श्रद्धेय डॉ० कोठिया जी भारतीयदर्शन और जैन न्यायविद्याके प्रथम पंक्तिके अग्रगण्य मनीषी हैं। वे सहृदयवाग्मी, कुशल संयोजक, सफल संचालक एवं उदारमना विद्वान् हैं । अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के रचयिता, संपादक तथा अनुवादक डॉ० कोठियाजीका जन्म जून १९११ ई० में मध्यप्रदेशके छतरपुर मण्डलके श्री रेशिंदीगिरमें हुआ। अनेक शिक्षा-संस्थाओंमें शिक्षादान करते हुए डॉ० कोठिया काशी हिन्दू विश्वविद्यालयमें १४ वर्षों तक प्राध्यापक और उसके बाद रीडरके पद पर कार्यरत रहे । अखिल भारतवर्षीय दि ० जैन विद्वत्परिषद्के अध्यक्ष, श्रीगणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला तथा वीर सेवा मन्दिर-ट्रस्टके मंत्री एवं देशकी अनेक संस्थाओंके संचालक डॉ० कोठियाका अनेक बार सम्मान हुआ है । सन् १९८२ ई० में उन्हें एक भव्य अभिनन्दन-ग्रंथ' समर्पित करके अखिल भारतीय सम्मानसे अलंकृत किया गया है ।
डॉ० कोठियाके संपादकत्वमें डॉ० पन्नालाल साहित्याचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ तथा अन्य अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं । आपकी प्रमुख कृतियाँ-(१) संपादित ग्रन्थ-न्याय-दीपिका, आप्त-परीक्षा, प्रमाणपरीक्षा स्याटाद-सिद्धि. प्रमाण-प्रमेय-कलिका अध्यात्म-कमलमार्तण्ड आदि तथा-(२) मौलिक-कृतियाँ---- जैन-दर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन, जैन-तर्कशास्त्रमें अनुमान विचार आदि हैं ।
प्रस्तुत 'अभिनन्दन ग्रन्थ'के अथसे इति तक यशस्वी सूत्रधार और 'प्रधानसंपादक' आप ही हैं ।
डॉ० (५०) पन्नालालजी, साहित्याचार्य :
परम-प्रातिभ, लब्ध-प्रतिष्ठ-आचार्य, निष्णात वाग्मी, मनीषी कवि, कुशल संचालक और सफल संगठक डॉ० पन्नालालजी साहित्याचार्यका जन्म ५ मार्च १९११ ई० को हआ। वे संस्कृत तथा हिन्दीके अनेक मौलिक ग्रन्थोंके प्रणेता तथा शताधिक ग्रन्थोंके यशस्वी सम्पादक और अनुवादक है । मध्यप्रदेश शासन, महामहिम राष्ट्रपति महोदय तथा विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा सम्मानित साहित्याचार्यजीका कार्यक्षेत्र पूज्य वर्णीजी द्वारा संस्थापित श्री गणेश जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर रहा है । वे अखिल. भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत्परिषदके मंत्री. अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष एवं संरक्षकके पदों पर (क्रमशः) अनवरत ४० वर्षसे सेवारत है। उनका अखिल-भारतीय अभिनन्दन ८६१ पष्ठीय अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पित करके किया जा रहा है । वे प्राचीन वाङ्मय विशेषतः जैन-साहित्य और दर्शनके मूर्धन्य मनीषी हैं । - पं० पन्नालालजी द्वारा प्रणीत 'सम्यक्त्व-चिन्तामणि' पर संस्कृतमें एक लघु शोध-प्रबन्ध भी सागर विश्वविद्यालयमें लिखा गया है।
प्रस्तुत 'अभिनन्दन ग्रन्थ' की सम्पादनविधामें आपका प्रशस्य योगदान है ।
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