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________________ ३८ : सरवस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ डॉ० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल : राजस्थानके जैन ग्रन्थ भण्डारोंमें सुरक्षित महनीय साहित्यको उजागर करके प्राचीन वाङ्मय, विशेषतः जैन अनुसन्धानके अनेक संभावित पक्षोंका उद्घाटन करनेवाले डॉ० कासलीवालका जन्म आठ अगस्त १९२० ई० को जयपुरके निकट हुआ। संस्कृत, प्राकृत और हिन्दीके ५०० से अधिक ग्रन्थोंका परिचय तथा प्रशस्ति प्रकाशित करके उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । आप इतिहासरत्न, विद्यावारिधि आदि उपाधियोंसे सम्मानित किये गये हैं । अनेक ग्रन्थोंके प्रणेता महावीर ग्रन्थ अकादमीके माध्यमसे अलभ्य-अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करनेवाले डॉ० कासलीवालजी अनेक अभिनन्दन-ग्रन्थोंका कुशलतापूर्वक संपादन कर चुके हैं। विवेच्य 'अभिनन्दन ग्रन्थ' की सामग्री-संचयन, साक्षात्कार आयोजन और सम्पादन कार्यमें आपके सुदीर्घ अनुभव तथा सहज प्रकृतिका लाभ निरन्तर प्राप्त हुआ है । पं० बलभद्रजी जैन, न्यायतीर्थ : प्रभावक-पत्रकारिता, समीक्षा प्रधान पैनीदृष्टि, यशस्वी लेखक, कुशल संचालक पं० बलभद्रजी अग्रगण्य विद्वान् हैं । प्राकृत भाषाओं और उनके हार्दको जन-जन तक पहुँचानेके लिए कृतसंकल्प पं० बलभद्रजीका प्रत्युत्पन्नमतित्व सर्वत्र विश्रुत है । वे इस समय 'कुन्द-कुन्द-भारती' के यशस्वी निदेशक हैं । जैनधर्मकी तत्त्वमीमांसाको उसके मौलिक रूपमें प्रस्तुत और विवेचक तथा भारतके दि० जैनतीर्थ आदि ग्रन्थोंके लेखक आदरणीय पं० बलभद्रजीने इस ग्रन्थके सम्पादनमें गहरी दिलचस्पी ली है। श्री नीरजजी जैन, एम० ए०: __ ३१ अक्टूबर १९२६ ई० को जबलपुर जिलेके रीठी नगर में जन्में श्री नीरजजी सम्प्रति सतना निवासी हैं । वे हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, प्राकृत तथा अंग्रेजीके मनीषी विद्वान् हैं । साहित्य जगत्में उनका प्रवेश फरवरी १९४४ ई० से हुआ और अनेक पत्र-पत्रिकाओंमें आपका लेखन गतिशील रहा । आपकी प्रकाशित पुस्तकोंमेंअहिंसाके अग्रदूत, वर्णी-वन्दना, कुण्डलपुर, तुलादान, आजादीको दुलहन, गोमटेश-गाथा, सोनगढ़-समीक्षा, श्रवणबेलगोला आदि मुख्य हैं । आपको अनेक रचनाएँ अप्रकाशित भी हैं। भारतीय इतिहास, कला और पुरातत्त्वके क्षेत्रमें कुशल लेखक श्री नीरजजी प्रसादगुण-पूर्ण कवि भी हैं।। श्री नीरजजी साहित्यिक, सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियोंके सम्पादनमें निरन्तर सक्रिय मनस्वी विद्वान् हैं । वे जैनागमके अध्येता, प्रभावक वक्ता, प्रसाद गुण पूर्ण कवि और पुरातत्त्ववेत्ता हैं । प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थके सम्पादनमें श्री नीरजजीके दिशा निर्देश उपयोगी हुए हैं । डॉ० राजारामजी जैन : सम्प्रति प्राकृत भाषाओंके अध्ययन-अनुशीलनके क्षेत्रमें (स्व०) डॉ० नेमिचन्द्रजी ज्योतिषाचार्यको प्रवृत्तियोंको गति-प्रदाता डॉ० राजारामजीका जन्म सागर जिलेके मालथौन ग्राममें फरवरी १९२९ ई० को हुआ था। उनका शिक्षण पपौराजी तथा वाराणसीके जैन विद्यालयोंके अतिरिक्त बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें भी हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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