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३६ : सरस्वती-बरवपुत्र पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनम्वन-प्रन्य
संस्कृति और समाज १. हमारी द्रव्य पूजाका रहस्य २. साधुत्वमें नग्नताका महत्त्व ३, जैनदृष्टिसे मनुष्योंमें उच्च-नीच
व्यवस्थाका आधार ४. भगवान महावीरका समाज दर्शन ५. जैन मंदिर और हरिजन
: हमारी द्रव्य पूजाका रहस्य, जैनदर्शन, दिसम्बर १९३६ । : साधुत्वमें नग्नताका स्थान, अनेकान्त, अप्रैल १९५५ ।। : जैनदृष्टिसे मनुष्योंमें उच्च-नीच व्यवस्थाका आधार, मुनि
हजारीमल स्मतिग्रन्थ १९६५ । : भगवान महावीरका अपरिग्रहवाद, वीर, ५ अप्रैल १९४७ । : जैन मंदिर और हरिजन, ज्ञानोदय नवम्बर १९४९ ।
'वीर' २८ फरवरी १९४८, वर्ष २३ ।। : अस्पृश्यता अपराध विधेयकके सम्बन्धमें जैन समाजको सही
दृष्टिकोण अपनानेकी आवश्यकता, जैनसन्देश, २४ फरवरी १९५५ ।
६. भारतीय संस्कृतिके सन्दर्भमें हिन्दू
शब्दका व्यापक अर्थ
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