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________________ 卐 निर्ग्रन्थमार्ग पूर्णतया अहिंसा प्रधान है । परब्रह्म के रूप में प्रसिद्ध वह अहिंसा परा वलंबन से सर्वथा निर्मुक्त उस मुनि धर्म में ही संभव है जहां लेशमात्र भी आरंभ नहीं रहता । आचार्य समन्तभद्र नेमिजिनेन्द्र की स्तुति करते हुए कहते हैं कि हे भगवन् ! आपने करुणा के वश उस परिपूर्ण अहिंसा को सिद्ध करने के लिए बाह्य व अभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रह को छोड़ा है, व उस निर्मल वेश को विकृत करने वाली किसी प्रकार की उपाधि में अनुराग नहीं किया है । (स्वयंभू स्तोत्र ११६) आचार्य देशभूषण जी महाराज ने उस निराकुलतामय मुनि धर्म के माहात्म्य से प्रेरित होकर उसे स्वीकार किया है व दीर्घ काल से उस पर प्रस्थित हैं। उनके साधु जीवन से अन्य मुमुक्षु जन को प्रेरणा मिलती है । रत्नत्रय के साधक साधु सदा वन्दनीय हैं । मैं ऐसे साधकों के प्रति श्रद्धावनत होकर नतमस्तक हूँ। -पं० बालचन्द्र शास्त्री ॐ परम पूज्य मुनि श्री देशभूषणजी महाराज के वचनामृत के सिंचन से न जाने कितने जीव इस संसार समुद्र से पार होकर मुक्ति को प्राप्त करेंगे। यथा नाम तथा गुण के धारक गुरुदेव शिवपुर का मार्ग दिखाने के लिए सूर्य के सदृश और शिष्यों पर अनुग्रह करने वाले माता के तुल्य, और उनके दुर्गुण रूपी रोग को निकालने के लिए वैद्य के समान, इस भव रूपी गहन वन से निकालने के लिए हस्तावलम्ब रूप, अगणित गुणों के धारक हैं, जिनका वर्णन सहस्र जिह्वा से भी नहीं हो सकता। शास्त्रों ने जो गुरु का लक्षण बताया है, वे सब उनमें पूरे घटित होते हैं। ऐसे परमोपकारी मुनिवर्य का अभिनन्दन करके संयोजकों ने स्वयं को गौरवान्वित किया है। उनका अभिनन्दन तो सूर्य को दोपक दिखाना है। मैं मुनिजी का शत-शत वन्दन एवं कोटि-कोटि अभिनन्दन करता हूँ । -डॉ० प्रेमचन्द जैन राजस्थान विश्वविद्यालय आपने परम पावन आचार्यप्रवर श्री देशभूषण जी महाराज का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का निश्चय किया है, यह जान कर प्रसन्नता हुई । आचार्यप्रवर का समस्त जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित रहा है, अभिनन्दन ग्रन्थ तो उनके असीम व्यक्तित्व के प्रति आपका एक पुष्प मात्र है । आचार्यप्रवर का बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व ग्रन्थ से उजागर होगा, ऐसी कामना है । -रामचन्द्र सारस्वत अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर तेरापंथी समाज, कलकत्ता आचार्यरल श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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