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________________ # एक गतिशील धर्माचार्य के रूप में आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने समाज की अविस्मरणीय सेवा की है । आचार्यश्री वास्तव में देश के अद्वितीय आभूषण हैं और अनन्तानन्त गुणों के भण्डार हैं। उनके अगणित उपकारों से भारतवर्ष का जैन समाज कभी भी उऋण नहीं हो सकता। मेरे पूज्य पिता स्वर्गीय श्री मिलाप चंद जी गोधा का आचार्यश्री से दीर्घकाल तक सम्बन्ध रहा है। फलतः बाल्यकाल से हो आचार्यश्री की धर्म-प्रभावना, लेखन कार्य, रचना शिल्प आदि के चमत्कार से मैं प्रभावित रहा हूँ। आचार्यश्री के दिव्य गणों के प्रति मैं अपनी हार्दिक भक्ति एवं श्रद्धा प्रकट करता हूँ और उनके चरणों में शतशः वन्दन 'आस्था और चिन्तन' नामक अभिनन्दन ग्रन्थ के द्वारा भारतवर्ष के जैन समाज ने दिगम्बर परम्परा के युगप्रमुख शीर्षस्थ आचार्य के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति व्यक्त करके अपने सामाजिक दायित्व की पूर्ति की है। इस अभिनन्दन ग्रन्थ की संयोजना एवं प्रकाशन के लिए मैं समिति के पदाधिकारियों एवं सम्पादन मंडल के सभी प्रबद्ध सदस्यों का हृदय से स्वागत करता हूँ। - कश्मीरचन्द गोधा शांतिविजय एण्ड कम्पनी, जनपथ, नई दिल्ली आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज के अभिनन्दनार्थ ग्रन्थ प्रकाशन की सुचना पाकर अत्यन्त हर्ष हुआ। जिन-परम्परा भारतीय दर्शन-निधि की अति प्राचीन परंपरा है। यह परंपरा किसी परम शक्ति की कृपा पर नहीं, अपने ही श्रम द्वारा साध्य की प्राप्ति की मान्यता पर टिकी है। बौद्ध परंपरा जिन-परंपरा से बहुत बाद की, मात्र ढाई हजार वर्ष पूर्व की है, किंतु भारत में वह अपनी जड़ अधिक समय तक नहीं जमा सकी और जैन परंपरा आज भी भारत में न केवल जीवित है, बल्कि फल-फल भी रही है। कारण ? इस परंपरा का प्रचार राजकीय साधनों द्वारा बलपूर्वक नहीं हुआ है। आत्मिक बल और अपार असहिष्णुता इस मत के प्रचार के साधन रहे हैं। जैन मत अन्तर्मुखता को प्रधानता देता है। अति-अन्तर्मुखी जनों को अपने तन से बाहर के ब्रह्माण्ड की सुधि नहीं रहती। बाह्य संसार के प्रति विमुख इन जनों की साधना से सामान्य जन अवगत नहीं हो पाते । अभिनन्दन ग्रन्थ जैसे आयोजन इनकी सूचना अन्य जनों तक पहुँचाने के साधनों में से हैं । आपका यह सद्प्रयास सफल हो। -दयानन्द योगशास्त्री कुलपति, अध्यात्मविज्ञान शोध संस्थान एवं निदेशक, स्टार पब्लिकेशन्स आस्था का अर्घ्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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